Breaking News

इजरायल पर आज हिज्बुल्लाह ने 105 रॉकेट दागे     |   यूपी में 11 अक्टूबर को महानवमी पर सार्वजनिक अवकाश घोषित     |   कट्टरपंथी समूह हिज्ब-उत-तहरीर पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया     |   पंचतत्व में विलीन हुए रतन टाटा, अंतिम संस्कार में उमड़ा जन-सैलाब     |   वर्ली श्मशान पहुंचा रतन टाटा का पार्थिव शरीर, कुछ देर में अंतिम संस्कार     |  

बीकानेर की छोटी सी दुकान से कैसे घर-घर की रसोई की बनी हिस्सा, जानें हल्दीराम का इतिहास

एक ऐसा स्वाद जो भारत के हर एक हिस्से में चर्चित है. जब भी नमकीन का नाम आए तो सबसे पहले सभी के दिमाग और जुबान में एक ही ब्रांड का नाम उभर कर सामने आता है, जिसका नाम हल्दीराम है. इसके स्वाद ने ना केवल भारतीय बल्कि विदेशियों को दीवाना बनाया है. चलिए जानते है आखिर आज दुनिया भर में मशहूर ब्रांड के निर्माता कौन है, तथा इसका इतिहास क्या है.

हल्दीराम का निर्माण साल 1937 में आजादी से पहले हो गया था, लेकिन तब मार्किट में बीकानेर के भीखाराम अग्रवाल ने भुजिया का कारोबार काफी पहले से शुरु था. भीखाराम अग्रवाल की बेटी भुजिया बनाया करती थी, जिसका स्वाद काफी उम्दा था. कहा जाता है कि भीखामार के अग्रवाल की बेटी द्वारा बनाई गई भुजिया का स्वाद मार्केट में मिलने वाले भुजिया से भी बहुत अच्छा था. जो देखते ही देखते फेमस हो गयी और फिर धीरे-धीरे यह भुजिया परिवार की इनकम का मुख्य साधन हो गया.

भीखाराम के पोते गंगाबिशन अग्रवाल को लोग हल्दीराम के नाम से जानते थे. क्योंकि उनकी मां उन्हें हल्दीराम के नाम से बुलाती थी. वो भी इसी बिजनेस से जुड़ गए. उन्होंने एक छोटी सी दुकान में नाश्ते के लिए नमकीन बनाना शुरु किया. उन्होंने भुजिया बनाने के लिए बेसन की जगह मोठ दाल का इस्तेमाल किया. फिर भुजिया को तैयार करके बेचना शुरु किया और कुछ समय में ही उनका कारोबार तेजी से भरने लगा. 

इसके बाद उन्होंने भुजिया को ब्रांड बनाने के लिए बीकानेर के महाराजा 'डूंगर सिंह' के नाम पर 'डूंगर सेव' रख दिया और महाराजा डूंगर सिंह का नाम जुड़ते ही भुजिया पूरे जिले में फेमस हो गई. बता दें, तब भुजिया का दाम 5 पैसा प्रति किलो रखा था. कहा जाता है कि फिर धीरे-धीरे लोग इसे बीकानेर में हल्दीराम की भुजिया कहने लगे. ऐसे में गंगाबिशन अग्रवाल ने इसे आधिकारिक तौर पर भुजिया का नाम हल्दीराम रख दिया. यहीं से हल्दीराम कंपनी की नीव पड़ गई.

फिर, साल 1955 में गंगाबिशन अग्रवाल ने कोलकाता में भी भुजिया का कारोबार शुरु करने का फैसला किया. यहां पर उन्होंने हल्दीराम भुजियावाला के नाम से कंपनी की शुरुआत की. उसके बाद यह कंपनी कोलकता में ब्रांड बन गई. इसी के साथ हल्दीराम के बड़े बेटे सत्यानारायण ने पिता और भाई से अलग होकर हल्दीराम एंस संस नाम से अलग कंपनी शुरु कर दी. वहीं, हल्दीराम के पोतों ने नागपुर में बिजनेश का दायरा बढ़ाया.

उसके बाद हल्दीराम अपना एक स्टोर दिल्ली में साल 1982 में खोलता है. यहां भी सब की जुबां पर हल्दीराम का स्वाद छा गया. इसी के साथ हल्दीराम के कई स्टोर दिल्ली में खुल गए. फिर धीरे-धीरे हल्दीराम ने अपना प्रोडक्ट भारत से बाहर निर्यात करना शुरु किया और आज दुनिया के कई देशों में हल्दीराम के उत्पाद बेचे जाते है.