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'भूपति' के आत्मसमर्पण की कहानी: पुलिस ने बल के बजाय बातचीत से मनाया

(तस्वीर के साथ)

गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), 15 अक्टूबर (भाषा) एक महीने तक पिछले दरवाजे से चली बातचीत के बाद मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ ‘भूपति’ को आत्मसमर्पण किया। भूपति ने प्रतिबंधित पीपुल्स वार ग्रुप के संस्थापक सदस्य के रूप में दशकों तक महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर माओवादी आंदोलन को फैलाने में मदद की थी।

केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो सदस्य भूपति का जीवन अब तक सशस्त्र संघर्ष से जुड़ा रहा लेकिन दो दिन पहले उसने अपने 60 साथियों के साथ जंगल से निकलकर गढ़चिरौली पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।

घटनाक्रम से अवगत एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह कहानी किसी भीषण मुठभेड़ की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जिसका धीरे-धीरे अपनी विचारधारा पर से विश्वास क्षीण हुआ। यह कहानी उसे (भूपति) मुख्यधारा में लौटाने के लिए किए गए सावधानीपूर्वक मानवीय प्रयासों की है।

अधिकारी ने बताया कि शुरुआती संकेत पिछले महीने मिलने लगे थे, जब भूपति ने महसूस किया कि नक्सली आंदोलन अपने खात्मे की ओर बढ़ रहा है। इसके बाद उसने आत्मसमर्पण की इच्छा जताते हुए पैम्फलेट और प्रेस नोट जारी करने शुरू किए थे।

अधिकारियों ने बताया कि इस वर्ष के शुरू में भूपति की पत्नी तारक्का के आत्मसमर्पण करने के बाद उसके (भूपति) हृदय और विचारधारा में परिवर्तन के पर्याप्त संकेत मिल रहे थे, क्योंकि भूपति को यह अहसास हो गया था कि सशस्त्र संघर्ष अंततः विफल हो गया है। इसके कारण भूपति का शेष शीर्ष नक्सल नेतृत्व के साथ मतभेद पैदा हो गया, जिससे आंतरिक संघर्ष पैदा हुआ और इसी कराण उसे आत्मसमर्पण का निर्णय लेना पड़ा।

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘जब उसने अपनी इच्छा ज़ाहिर की, तो हमें अहसास हो गया कि यह एक नाजुक पल है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने तुरंत अपने खुफिया नेटवर्क को सक्रिय कर दिया।’’

अधिकारी ने बताया कि बातचीत किसी औपचारिक बैठक कक्ष में नहीं, बल्कि भामरागढ़ क्षेत्र के भीतर मौजूद विश्वसनीय सूत्रों के जरिए शुरू हुई।

उन्होंने बताया कि वाम चरमपंथ हलकों में भूपति के आत्मसमर्पण की अटकलें तेज थीं।

भूपति के आत्मसमर्पण करने के संकेत करीब दस दिन पहले मिले जब उसने फोडेवाड़ा क्षेत्र में ग्रामीणों से मुलाकात की और हिंसा का रास्ता छोड़ने के बारे में अपने विचार सार्वजनिक रूप से साझा किए।

अधिकारी ने बताया कि यह इस बात का महत्वपूर्ण प्रतीक था कि वह (भूपति) उस विचारधारा से दूर जा सकते हैं जिसका उन्होंने चालीस वर्षों तक प्रचार किया था।

वार्ता 13 अक्टूबर की सुबह समाप्त हो गई, जब पुलिस के एक सूत्र (जो नक्सली नेताओं के संपर्क में भी था) ने अंतिम संदेश दिया कि भूपति और उसका एक बड़ा समूह उसी शाम भामरागढ़ तालुका के होदरी गांव के बाहर आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार है।

अधिकारी ने बताया कि किसी भी टकराव से बचने के लिए रणनीति पर लगातार नजर रखी गई और सावधानीपूर्वक अमल किया गया। उन्होंने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान के महानिरीक्षक संदीप पाटिल, पुलिस अधीक्षक नीलोत्पल गढ़चिरौली और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने भी पूरी घटनाक्रम पर नजर रखी तथा शांतिपूर्ण ढंग से समर्पण सुनिश्चित कराया।

भूपति ने जब बुधवार को अपने 60 साथियों के साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समक्ष औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण किया तो यह प्रतिबंधित संगठन के लिए एक बड़ा झटका था, जो छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सुरक्षा बलों के लगातार दबाव का सामना कर रहा है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रमुख रणनीतिकार के अलावा, डीकेएसजेडसी (दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति) के दो सदस्य और डीवीसीएम (विभागीय समिति) के 10 सदस्य उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने अपने हथियारों के साथ फडणवीस के समक्ष आत्मसमर्पण किया।

पुलिस के अनुसार, हथियार डालने वाले 61 माओवादियों में से 12 जोड़े थे। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को पुनर्वास के लिए सामूहिक रूप से तीन करोड़ रुपये से ज़्यादा मिलेंगे।

भाषा

राखी धीरज

धीरज