नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय द्वारा दीपावली के दौरान हरित पटाखों को फोड़ने की अनुमति दिए जाने पर पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। विशेषज्ञों ने कहा कि उचित प्रवर्तन और जन जागरूकता के बिना, यह कदम दिल्ली की पहले से ही जहरीली हवा को और खराब कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कुछ शर्तों के साथ दीपावली के दौरान दिल्ली-एनसीआर में हरित पटाखों की बिक्री और उन्हें फोड़ने की अनुमति दे दी।
न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि हरित पटाखों का उपयोग दीपावली से एक दिन पहले और त्यौहार के दिन विशेष समय अवधि (सुबह छह बजे से सात बजे तक और रात आठ बजे से 10 बजे तक) तक सीमित रहेगा।
पर्यावरण कार्यकर्ता अमित गुप्ता ने अदालत के फैसले को 'व्यावहारिक' बताया, क्योंकि यह लोगों के दीपावली के उत्सव के अधिकार का सम्मान करता है लेकिन उन्होंने वायु प्रदूषण को साल भर की समस्या मानने में व्यापक विफलता की आलोचना की।
उन्होंने कहा, 'दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण साल भर की समस्या है, न कि सिर्फ एक महीने या सर्दियों की। दुर्भाग्य से इसे व्यवस्थित रूप से दूर करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए हैं।'
उन्होंने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) वर्तमान में 35 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी के साथ काम कर रहा है, जबकि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) जैसे राज्य निकाय भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
गुप्ता ने कहा, 'प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई जमीनी स्तर पर कमजोर है क्योंकि जिम्मेदार संस्थानों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और वे अत्यधिक बोझ तले दबे हुए हैं।'
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में ‘एयर लैबोरेटरीज’ के पूर्व अतिरिक्त निदेशक और प्रमुख दीपांकर साहा ने इस फैसले को 'तर्कसंगत' बताया और कहा कि प्रमाणित हरित पटाखे पारंपरिक पटाखों का बेहतर विकल्प हैं।
हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल प्रमाणीकरण से समस्या का समाधान नहीं होगा।
उन्होंने कहा, 'बाजार में केवल प्रमाणित पटाखे ही बेचे जाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की तत्काल आवश्यकता है।'
उन्होंने नागरिकों से पटाखे फोड़ने के समय की पाबंदी का सख्ती से पालन करने का आग्रह किया।
साहा ने कहा कि अनुकूल मौसम होने पर भी, प्रवर्तन महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि हमने नियम और विनियम तो बना दिए हैं, लेकिन गैर-प्रमाणित पटाखों के उत्पादन और आयात को नियंत्रित करने में असफल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इससे भी खराब बात यह है कि अधिकतर लोग बहुत कम समयावधि के भीतर पटाखे जलाते हैं, जिससे प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि हो जाती है।
केंद्र और दिल्ली सरकार के संयुक्त अनुरोध को स्वीकार करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने हरित पटाखों पर प्रतिबंध में ढील दी।
सीजेआई गवई ने कहा, '18 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक हरित पटाखों की बिक्री की अनुमति होगी।'
पर्यावरणविद् और 'एनवायरोकैटालिस्ट्स' के संस्थापक सुनील दहिया ने आलोचनात्मक रुख अपनाते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से अनपेक्षित परिणाम सामने आ सकते हैं।
दहिया ने कहा, ‘‘हरित पटाखों के उत्पादन और इन पटाखों के फोड़ने को वैध ठहराना दरअसल त्यौहार के दौरान बढ़े हुए उत्सर्जन को वैध ठहराने जैसा है।’’
उन्होंने बताया कि हालांकि हरित पटाखों से 30 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है लेकिन दीपावली के दौरान भारी मात्रा में पटाखों के इस्तेमाल से यह लाभ प्राप्त करना भी मुश्किल है।
इस बीच, उच्चतम न्यायालय की पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ई-कॉमर्स मंच के माध्यम से पटाखों की बिक्री की अनुमति नहीं दी जाएगी।
भाषा
राखी संतोष
संतोष