नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) भ्रष्टाचार के एक मामले में वन अधिकारी राहुल के खिलाफ मुकदमा चलाने पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक से क्षुब्ध उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को ना केवल उन्हें अवमानना का नोटिस जारी किया, बल्कि न्यायिक रिकॉर्ड को अपने पास स्थानांतरित करने के अलावा उच्च न्यायालय के आदेश पर भी रोक लगा दी।
भारतीय वन सेवा के अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी उत्तराखंड सरकार ने शीर्ष अदालत के विभिन्न आदेशों के बाद दी थी, जो राज्य के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में अवैध निर्माण और पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई की निगरानी कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ इस बात से अप्रसन्न थी कि अधिकारी ने शीर्ष अदालत में कार्यवाही की जानकारी होने के बावजूद, उत्तराखंड उच्च न्यायालय का रुख किया और कथित चूक के लिए दर्ज आपराधिक मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के राज्य सरकार के फैसले पर स्थगन हासिल कर लिया।
अधिकारी को नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने उन्हें 11 नवंबर को पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा और यह भी पूछा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि उच्च न्यायालय के समक्ष चल रही कार्यवाही वापस ली जाए और 10 अक्टूबर को मंज़ूरी देने पर रोक लगाने के उसके आदेश पर रोक लगाई जाए।’’
इस घटनाक्रम से पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने अवगत कराया, जो वन संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर 1995 में टी.एन. गोदावर्मन द्वारा दायर जनहित याचिका में न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने 17 सितंबर को उत्तराखंड सरकार को भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच तीन महीने के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया था। उसने केंद्र से भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने को भी कहा था।
पीठ ने पूछा था कि राज्य सरकार, सीईसी (केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति) की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद अधिकारी को विशेष पद दिए जाने का पता चलने के बाद भी उन्हें ‘विशेष तवज्जो’ क्यों दे रही है?
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने राहुल को छोड़कर सभी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है।
‘‘आज यह सूचित किया जाता है कि राज्य ने उक्त अधिकारी के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति दे दी है। यह कहा गया है कि जहां तक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत स्वीकृति का प्रश्न है... राज्य का कहना है कि इसे केंद्र सरकार को अग्रेषित कर दिया गया है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने आदेश दिया था, ‘‘हम राज्य सरकार के रुख को स्वीकार करते हैं। हम उत्तराखंड सरकार को उक्त अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच शीघ्रता से और तीन महीने के भीतर पूरी करने और केंद्र को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी देने और एक महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।’’
पीठ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पूर्व निदेशक राहुल की राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के रूप में नियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी।
राज्य के वन मंत्री और अन्य की राय को दरकिनार करके आईएफएस अधिकारी को ‘राजाजी बाघ संरक्षित क्षेत्र’ का निदेशक नियुक्त किये जाने पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह से सवाल करते हुए पीठ ने कहा था,‘‘कार्यपालिका के प्रमुखों से ‘पुराने जमाने के राजा’ जैसा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती और हम ‘सामंती युग’ में नहीं रह रहे।’’
पीठ ने कहा था, ‘‘उनके (अधिकारी) प्रति मुख्यमंत्री का विशेष लगाव क्यों होना चाहिए। केवल इसलिए कि वे मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं?’’
यह आरोप लगाया गया था कि अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही का संबंध ‘कार्बेट बाघ संरक्षित क्षेत्र’ से है जहां कई अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
भाषा
संतोष माधव
माधव