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पेरिस समझौते से बाहर हो गया अमेरिका, पूरी दुनिया पर क्या पड़ेगा असर?

दूसरी बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने उद्घाटन भाषण में बाइडेन प्रशासन की जलवायु-अनुकूल ऊर्जा नीतियों को उलटने का ऐलान कर दिया। अपने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन, उन्होंने एक दशक में दूसरी बार पेरिस समझौते से दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जक, अमेरिका को वापस लेने वाले एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए।

2015 का पेरिस समझौता दुनिया के तापमान को सीमित रखने के लिए किया गया था। इसमें ईरान, लीबिया और यमन को छोड़कर दुनिया के लगभग सभी देश शामिल हैं। अमेरिका के बाहर निकलने से पेरिस समझौते से बाहर कुल चार देश हो गए हैं। पेरिस समझौते का उद्देश्य दुनिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।

वीओ: अमेरिकी राष्ट्रपति का नया फैसला 2017 जैसा ही है लेकिन इस बार इसका और ज्यादा गहरा असर पड़ सकता है। पहले जब अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हुआ था तब राष्ट्रपति चुनाव होने ही वाले थे। जैसे ही बाइडेन राष्ट्रपति बने, उन्होंने ट्रंप का फैसला पलट दिया और अमेरिका पेरिस समझौते में शामिल हो गया था। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका के फैसले का असर पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों दोनों के लिए महत्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम लाएगा। 

  जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों को एकजुट करने में पेरिस समझौता महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ये उत्सर्जन को कम करने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करता है और राष्ट्रों को उनकी प्रगति पर नज़र रखने और रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

ट्रंप की वापसी से पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं। इससे संभावित रूप से वार्मिंग और बिगड़ते जलवायु संकट को सीमित करने के वैश्विक प्रयासों में बाधा आ रही है। 2017 में जब अमेरिका बाहर हुआ था तो उसके बाद ज्यादा उत्सर्जन हुआ था और अंतरराष्ट्रीय जलवायु पर भी इसका बड़ा असर पड़ा था।