देश में धर्मांतरण के मुद्दे से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। कुछ याचिकाओं में कई राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती दी गई है, वहीं एक अन्य याचिका में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ राहत की मांग की गई है । यह मामला आज मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष आएगा। जनवरी 2023 में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है और इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। इस याचिका में केंद्र और राज्यों को कथित धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने के निर्देश देने की मांग पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी। याचिका में "डराने, धमकाने, उपहारों और मौद्रिक लाभों के माध्यम से धोखे से लालच देने" के माध्यम से धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
शीर्ष अदालत ने 2023 में कई राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाले पक्षों से इस मुद्दे पर मामलों को उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक आम याचिका दायर करने को कहा था। इसमें कहा गया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कम से कम पांच, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष सात, गुजरात और झारखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष दो-दो, हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन तथा कर्नाटक और उत्तराखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष एक-एक ऐसी याचिकाएं थीं। गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों द्वारा दो अलग-अलग याचिकाएं भी दायर की गईं, जिनमें धर्मांतरण पर उनके कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने वाले संबंधित उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ भी सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया और तर्क दिया कि उन्हें अंतरधार्मिक जोड़ों को "परेशान" करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाया गया था। मुस्लिम निकाय ने कहा कि पांच राज्यों के सभी स्थानीय कानूनों के प्रावधान किसी व्यक्ति को अपने धर्म का खुलासा करने के लिए मजबूर करते हैं और परिणामस्वरूप, उनकी निजता का हनन करते हैं।