घर के एक कोने में रखे क्रिकेट बैट किसी की याद दिला रहे हैं। ये बल्ले संजय लेले के थे। संजय को क्रिकेट का बहुत शौक था। ठाणे के डोंबिवली में रहने वाले संजय लेले की पहचान एक समर्पित पति और पिता के अलावा एक सफल अकाउंटेंट की थी। संजय लेले 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों की गोली का शिकार बन गए थे वे अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने गए थे। संजय लेले के बेटे हर्षल लेले ने उस भयावह मंजर को काफी करीब से देखा था।
संजय लेले अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ जम्मू कश्मीर घूमने गए थे लेकिन केवल पांच ही अपने पैरों पर लौट पाए। संजय लेले ठाणे में एक निजी फर्म में एकाउंटेंट के रूप में काम करते थे। उनके बहनोई राजेश कदम उन्हें याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। राजेश कदम बताते हैं कि वह 14 साल बाद कहीं घूमने गए थे।
राजेश कदम का एक सपना था। वे चाहते थे कि संजय लेले पूरे परिवार के साथ उनके गांव आएं लेकिन अब उनकी ये ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकेगी। दोस्तों के बीच संजय को 'डोंबिवली का सचिन तेंदुलकर' कहा जाता था। उनके लिए क्रिकेट सिर्फ़ एक खेल नहीं जीने का एक तरीका था।
तकरीबन डेढ़ दशक बाद घूमने गए संजय लेले के लिए पहलगाम मौत की घाटी बन गया। हमले में उनका बेटा भी घायल हुआ जो अब ठीक है। पहलगाम हमले में पिता को खो चुके हर्षल तस्वीरों को देखकर उन्हें याद करते हैं।