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रूस ने लगभग 50 सालों में अपना पहला मून मिशन किया लॉन्च, इसरो ने दी बधाई

रूस ने लगभग 50 सालों में अपना पहला मून मिशन लॉन्च किया है. रूस ने शुक्रवार को 1976 के बाद सुदूर पूर्व के वोस्तोचन अंतरिक्ष केंद्र से पहली बार सोयुज-2 रॉकेट की मदद से लूना-25 मून लॉन्च किया. तब वो सोवियत संघ का हिस्सा था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इस पर रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस (Roscosmos) को बधाई दी है। 

रूसी अंतरिक्ष यान के 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करने की संभावना है. ये वही तारीख है, जब भारत से 14 जुलाई को लॉन्च हुए चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के चंद्रमा की सतह पर कदम रखने की उम्मीद है. रूसी अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में तक पहुंचने में लगभग 5.5 दिन लगेंगे. इसके बाद उसे तीन से सात दिन का समय लगेगा जब वो चांद की सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर परिक्रमा कर रहा होगा.

दोनों ही देशों ने अपने-अपने यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जहां अभी तक कोई भी यान सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल नहीं हो सका है. भारत और रूस के बीच चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले उतरने की होड़ है.

अब तक केवल तीन देश-अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन ही चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग कर पाए हैं. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने कहा कि वो दिखाना चाहती है कि रूस चंद्रमा पर पेलोड पहुंचाने में सक्षम है. साथ ही रूस, चंद्रमा की सतह तक पहुंच की गारंटी सुनिश्चित करना चाहता है.

लोकप्रिय रूसी अंतरिक्ष विश्लेषक विटाली ईगोरोव ने कहा, "इस अभियान का लक्ष्य चंद्रमा का अध्ययन करना नहीं है. लक्ष्य दो महाशक्तियों चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ही बाकी देशों के बीच राजनैतिक प्रतिस्पर्धा है, जो अंतरिक्ष में महाशक्ति का खिताब हासिल करना चाहते हैं." 

यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से उसके लिए पश्चिमी देशों की टेक्नोलॉजी तक पहुंच कठिन हो गई है, जिससे उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रभावित हुआ है. विश्लेषकों का कहना है कि लूना-25 शुरू में एक छोटे मून रोवर को ले जाने वाला था, लेकिन बेहतर विश्वसनीयता के लिए और यान के वजन को कम करने के लिए उस विचार को छोड़ दिया गया था.

ईगोरोव ने कहा, "विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स हल्के होते हैं, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स भारी होते हैं. वैज्ञानिकों का लक्ष्य चांद पर पानी का अध्ययन करना हो सकता है, लेकिन रोस्कोसमोस का मुख्य लक्ष्य केवल चांद पर उतरना है. ताकि वो खोई हुई सोवियत विशेषज्ञता को दोबारा प्राप्त कर सके और ये सीखना कि नए युग में इस काम को कैसे करना है."

रोस्कोस्मोस के वीडियो फ़ीड के अनुसार, लूना-25 को रूस के सुदूर पूर्व में वोस्तोचन कोस्मोड्रोम से त्रुटिहीन रूप से लॉन्च किया गया. भारत ने इससे पहले साल 2019 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का प्रयास किया था, लेकिन लैंडर, चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वैज्ञानिकों की विशेष रुचि है. वैज्ञानिकों का मानना है हमेशा अंधेरे में रहने वाले दक्षिणी ध्रुव क्रेटरों में पानी हो सकता है. यहां चट्टानों में जमा पानी को भविष्य के खोजकर्ता हवा और रॉकेट ईंधन में बदल सकते हैं.

ब्रिटेन की रॉयल ऑब्जर्वेटरी, ग्रीनविच के खगोलशास्त्री एड. ब्लूमर ने कहा, "चंद्रमा काफी हद तक अछूता है और चंद्रमा का पूरा इतिहास केवल इसके चेहरे पर लिखा हुआ है. लूना-25 को चंद्रमा की चट्टान और धूल के नमूने लेने हैं. 

ब्लूमर ने कहा, "वहां किसी भी आधार के निर्माण से पहले चंद्रमा के पर्यावरण को समझने के लिए नमूने महत्वपूर्ण हैं, अन्यथा हम चीजें बना सकते हैं और छह महीने बाद उन्हें बंद करना पड़ सकता है क्योंकि सब कुछ रेत पर बना हो सकता है.