केरल की नर्स निमिषा प्रिया की यमन में मौत की सजा टलने की खबर से उनके परिवार और चाहने वालों को बड़ी राहत मिली है. इसी माह 16 तारीख को सना की जेल में निमिषा को मौत की सजा दी जानी थी, लेकिन भारत सरकार, धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिशों से यह सजा अस्थायी रूप से स्थगित हो गई. अब निमिषा को जीवनदान मिल गया है. यमन में उसकी मौत की सजा पूरी तरह रद्द हो गई है. इस बारे में भारतीय ग्रैंड मुफ्ती कंथापुरम एपी अबूबक्कर मुसलियार के दफ्तर ने कन्फर्म किया है कि निमिषा की सजा रद्द कर दी गई है. इस तरह अब निमिषा के अपने परिवार और बच्चों के पास भारत लौटने का रास्ता साफ हो गया है.
निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोड की रहने वाली 38 वर्षीय नर्स हैं. 2008 में बेहतर रोजगार के लिए वह यमन गईं और सना के एक सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया. 2011 में उनकी शादी टॉमी थॉमस से हुई और दोनों यमन में रहने लगे. 2014 में यमन में गृह युद्ध के कारण उनके पति और बेटी भारत लौट आए, लेकिन निमिषा वहीं रूक गईं. 2015 में उसने यमनी नागरिक तलाल अब्दो मेहदी के साथ साझेदारी में अल अमन मेडिकल क्लिनिक शुरू किया, क्योंकि यमनी कानून में विदेशियों को स्थानीय साझेदार की जरूरत होती है.
निमिषा के अनुसार तलाल ने उनके साथ धोखाधड़ी की. उसकी कमाई हड़प ली. पासपोर्ट जब्त कर लिया और शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न किया. उसने जाली दस्तावेज बनाकर खुद को निमिषा का पति भी बताया. 2017 में अपने दस्तावेज वापस लेने के लिए निमिषा ने तलाल को केटामाइन (बेहोशी का इंजेक्शन) दिया, ताकि वह बेहोश हो जाए. लेकिन डोज की अधिकता से तलाल की मौत हो गई. घबराहट में निमिषा ने शव को टुकड़ों में काटकर पानी की टंकी में फेंक दिया और यमन-सऊदी सीमा पर भागने की कोशिश में पकड़ी गईं. 2018 में यमनी अदालत में मुकदमा शुरू हुआ और 2020 में उसे शरिया कानून के तहत ‘किसास’ (प्रतिशोध) के आधार पर मौत की सजा सुनाई गई. 2023 में यमन के सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने सजा बरकरार रखी और दिसंबर 2024 में राष्ट्रपति राशद अल-अलिमी ने भी इस सजा को मंजूदी दे दी.
दरअसल, यमन में शरिया कानून लागू है. इसमें हत्या के लिए किसास के तहत मौत की सजा दी जाती है. निमिषा पर तलाल की हत्या का आरोप साबित हुआ और अदालत ने इसे जानबूझकर किया गया अपराध माना. निमिषा के वकील का कहना है कि उसे उचित कानूनी सहायता और अनुवादक नहीं मिला, जिससे वह अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख पाई. तलाल के परिवार खासकर उसके भाई अब्देलफत्ताह मेहदी ने ‘किसास’ की मांग की और ब्लड मनी स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
ब्लड मनी को अरबी भाषा में दिया (Diyya) कहा जाता है. यह इस्लामी शरिया कानून का एक प्रावधान है. हत्या या गंभीर शारीरिक नुकसान के मामलों में पीड़ित के परिवार को मुआवजे के रूप में दी जाने वाली राशि को ब्लड मनी कहा जाता है. यह प्रणाली मुख्य रूप से इस्लामी देशों जैसे यमन, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में लागू होती है. शरिया कानून के तहत हत्या जैसे अपराधों में ‘किसास’ (प्रतिशोध) के तहत दोषी को मौत की सजा दी जा सकती है, लेकिन पीड़ित का परिवार दोषी को माफ कर सकता है. बशर्ते वह ‘दिया’ स्वीकार कर ले.
निमिषा की सजा ए मौत को टालने में भारत सरकार, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और ग्रैंड मुफ्ती शेख अबूबकर अहमद की भूमिका अहम रही. शेख अबूबकर ने यमन के सूफी विद्वान शेख उमर बिन हफीज से बातचीत की, जिसके बाद तलाल का परिवार सजा को अस्थायी रूप से टालने पर राजी हुआ. इधर, सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल ने ब्लड मनी के लिए 58,000 अमेरिकी डॉलर जुटाए और केरल के व्यवसायी एमए यूसुफ अली ने भी वित्तीय मदद की पेशकश की. भारत सरकार ने यमन में हूती विद्रोहियों के नियंत्रण और औपचारिक राजनयिक संबंधों की कमी के बावजूद ईरान जैसे देशों के जरिए बातचीत की. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 14 जुलाई को हुई सुनवाई में भारत सरकार ने इन प्रयासों की जानकारी दी थी. इसके बाद फांसी को 14 अगस्त 2025 तक टाल दिया गया था.
निमिषा की जान बचाने के लिए ब्लड मनी अब भी एकमात्र रास्ता है, लेकिन तलाल का परिवार अड़ा हुआ है. यमनी राष्ट्रपति के पास विशेष परिस्थितियों में माफी देने का अधिकार है, लेकिन यह मुश्किल है. भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र या रेड क्रॉस जैसे मानवाधिकार संगठनों की मदद ले सकते हैं. निमिषा की मां प्रेमा कुमारी अप्रैल 2024 से यमन में हैं और तलाल परिवार से माफी की गुहार लगा रही हैं. सना की जेल में निमिषा की स्थिति दयनीय है, जहां हूती नियंत्रण के कारण मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें आम हैं.