नई दिल्ली: वर्ष 2022 में भारत में मानवजनित पीएम 2.5 वायु प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई जो 2010 की तुलना में 38 प्रतिशत अधिक है। इनमें से लगभग 44 प्रतिशत मौतों के पीछे जीवाश्म ईंधन का उपयोग जिम्मेदार रहा। यह जानकारी द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित एक वैश्विक रिपोर्ट में दी गई है।
‘द लांसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025 रिपोर्ट’ के अनुसार, सड़क परिवहन में पेट्रोल के उपयोग से ही करीब 2.69 लाख मौतें हुईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों से भारत को 339.4 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का लगभग 9.5 प्रतिशत) का आर्थिक नुकसान हुआ।
यह रिपोर्ट यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के नेतृत्व में 71 शैक्षणिक संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के 128 विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने तैयार की है। यह रिपोर्ट 30वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी30) से पहले प्रकाशित की गई है। इसमें जलवायु बदलाव और स्वास्थ्य के बीच संबंधों को लेकर व्यापक आकलन किया गया है।
रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में लगातार वायु गुणवत्ता ‘खराब’ से ‘बेहद खराब’ श्रेणी के बीच बनी हुई है। बीते सप्ताह प्रदूषण से निपटने के लिए बुराड़ी, करोल बाग और मयूर विहार जैसे इलाकों में क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) के प्रयोग किए गए, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे “अल्पकालिक उपाय” बताते हुए कहा कि यह वायु गुणवत्ता में गिरावट के मूल कारणों को हल नहीं करता।
इसके बारे में पीएसआरआई के अध्यक्ष और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य डॉ. पी. सी. खिलनानी ने कहा, "...जब पीएम 2.5 धूल, सड़क की धूल से निकलता है, तो इसका एक अलग प्रभाव पड़ता है। पीएम 2.5 पेट्रोल या डीजल से आता है। इसमें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक होते हैं जो कैंसर और अस्थमा का कारण बनते हैं। पीएम2.5 में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रिक ऑक्साइड ज्यादा होता है, जिससे अस्थमा ज्यादा होता है।"
डॉ. खिलनानी ने आगे कहा, "अक्टूबर 2023 में प्रकाशित शिकागो के एक अध्ययन के अनुसार, एक भारतीय का जीवनकाल 5.3 वर्ष कम हो रहा है। और दिल्ली में रहने वाले लोगों का जीवनकाल 11.9 वर्ष कम हो रहा है।"
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय कहती हैं, "इन अध्ययनों और साक्ष्यों ने पहले ही सचेत कर दिया है कि वायु प्रदूषण हमारे शरीर के हर अंग को कैसे प्रभावित कर रहा है। ये सूक्ष्म कण हमारे फेफड़ों में जाकर रक्तप्रवाह में मिल जाते हैं और शरीर के अंगों पर बुरा असर डालते हैं।"