France: फ्रांस में शोधकर्ताओं की एक टीम ने चींटियों में एक ऐसी असामान्य प्रजनन क्षमता का पता लगाया है, जो मूल जीव विज्ञान को ही बदल देती है। दक्षिणी यूरोप में आम तौर पर पाई जाने वाली इबेरियन हार्वेस्टर चींटी (मेसर इबेरिकस) न केवल अपनी प्रजाति बल्कि एक रानी के अंडों से एक पूरी तरह से अलग प्रजाति भी पैदा कर सकती है।
मोंटपेलियर विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. जोनाथन रोमिगुइर, जिन्होंने नेचर पत्रिका में अभूतपूर्व अध्ययन का नेतृत्व किया और इस खोज के पीछे वैज्ञानिक हैं। उन्होंने पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा, "आमतौर पर, जीव केवल अपनी ही प्रजाति को जन्म देते हैं। लेकिन यहां, ये चींटी इस नियम का पालन नहीं करती है।" उन्होंने आगे कहा, "एक रानी अपनी प्रजाति के नर पैदा कर सकती है और दूसरी प्रजाति मेसर स्ट्रक्चर के नर का क्लोन भी बना सकती है, हालांकि दोनों प्रजातियां पांच मिलियन साल पहले अलग हो गई थीं।"
ये क्रियाविधि असाधारण है क्योंकि रानी के अंडे कभी-कभी उसकी अपनी आनुवंशिक चीजों को मिटा देते हैं, जिससे केवल शुक्राणु का डीएनए ही रह जाता है। इसके कारण विदेशी नर का एक आदर्श क्लोन बनता है। लाखों साल पहले मेसोर इबेरिकस ने श्रमिक चींटियां पैदा करने की क्षमता खो दी थी, जो कॉलोनियों के संचालन के लिए जरूरी हैं। जीवित रहने के लिए रानियों ने वैज्ञानिकों द्वारा "शुक्राणु परजीवीवाद" नामक प्रक्रिया अपनाई, जिसमें मेसोर स्ट्रक्टर नरों से शुक्राणु चुराकर संकर श्रमिक चींटियां पैदा की गईं।
समय के साथ वे एक कदम और आगे बढ़े। इन नरों को उनके अपने घोंसलों में ही क्लोन करना शुरू कर दिया। रोमिगुइयर ने बताया, "ये एक निजी शुक्राणु बैंक चलाने या पशुओं को पालतू बनाने जैसा है।" इससे कॉलोनियां आजाद रूप से पनपने लगीं और भूमध्य सागर में फैल गईं।
रोमिगुइयर और उनकी टीम इस घटना को "जेनोपैरिटी" कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है, "किसी विदेशी को जन्म देना।" वे कहते हैं कि चींटियों के अलावा इस आनुवंशिक हैकिंग को समझने से दूसरी प्रजातियों में भी भविष्य की क्लोनिंग तकनीकों के लिए अंतर्दृष्टि मिल सकती है।