वैसे तो ये बात ठीक नहीं पर चाहे-अनचाहे भारत में लोकतंत्र का मतलब बहुत हद तक चुनाव और उससे तय होने वाला जीत-हार हो गया है जबकि लोकतंत्र इससे परे काफी कुछ है. आप पूछेंगे – क्या है वो काफी कुछ, जवाब है – फिर कभी. आज बात ये कि जो चुनाव लोकतंत्र को परिभाषित कर रहा है, उसको कराने वाला आयोग, उसके आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी, स्वायत्त और सरकारी दबाव से मुक्त है? ऐसे ही कुछ सवालों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होनी है.