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प्रेमियों ने की प्यार की सारी हदें पार, राजुला मालूशाही की प्रेम कहानी

दुनियाभर में हर किसी ने अनेकों प्रेम कहानियों के बारे में तो सुना ही होगा। बात अगर हीर रांझा की करे या लैला मज़नू की इन दो प्रसिद्ध जोड़ों के बारे में आखिर कौन नहीं जानता, हर कोई इनके प्यार की मिसाले देता है, लेकिन क्या आपने कभी राजुला मालूशाही की प्रेम गाथा के बारे में सुन है। इन दोनों ने भी अपने प्यार को पाने के लिए अनेकों परेशानियों का सामना किया लेकिन कभी हार नहीं मानी, कहते है ना साचे प्यार को उसकी मंजिल मिल ही जाती है। 

ये कहानी है हमारे प्यारे उत्तराखंड के कुमाऊं छेत्र की। राजुला मालूशाही की प्रेम गाथा कुमाऊं छेत्र में काफी प्रसिद्ध है। वहा का बच्चा बच्चा इन दो प्रेमी जोड़ों के बारे में जानता है । तो कहानी शुरू होती है कुमाऊं के बैराठ जिसे अब चौखुटिया कहा जाता है। एक समय पर वहा कटुआर वंश के राजा दुलाशाही का राज हुआ करता था, दुलाशाही के पास सब था धन दौलत ऐशो आराम, लेकिन फिर भी वो और उसकी पत्नी दुखी रहते थे। क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन रानी के सपने में भगवान बागनाथ आ कर उसको बताते है कि उसके जीवन में संतान का योग है जिसे सुन रानी के मन में फिर से आस जग जाती है और वो सारी बात राजा दुलाशाही को बताती है । जिसके बाद दोनों भगवान बागनाथ के दर्शन करने बागेश्वर चले जाते है। जहा उनकी मुलाकात व्यापारी सुनपति शौक और उसकी पत्नी गांगुली से होती है, ये दोनों भी भगवान के पास संतान प्राप्ति की कमाना के लिए ही आए थे।

कहते है न जिस पर बीतती है वही उस पीड़ा को समझता है ।  यही कारण था कि  दुलाशाही और सुनपति ने एक दूसरे से वादा किया कि अगर उनके बेटा बेटी होते है तो वो उनकी आपस में शादी करा देंगे। कुछ समय बाद भगवान की कृपा से राजा दुलाशाही के घर राजकुमार मालूशाही और व्यापारी सुनपति के घर राजुला का जन्म हुआ। सब अच्छा चल रहा था फिर एक दिन राजा दुलाशाही को एक पुरोहित ने बताया कि अगर तेरे पुत्र का विवाह अल्प आयु में नहीं हुआ तो उसकी मृत्यु हो जाएगी जिसे सुन राजा ने तुरंत व्यापारी सुनपति को ये संदेश भेजा और राजुला मालूशाही के विवाह का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद व्यापारी भी मान गया और दोनों का विवाह कर दिया गया। 

विवाह के कुछ दिनों बाद राजा की किसी कारण से मृत्यु हो गई जिसका फायदा महल के कुछ दुष्ट लोगों ने उठाया और रानी को कहा कि जो लड़की ने आते ही अपने ससुर को खा लिया वो आगे न जाने क्या करेगी, इसलिए सही यही रहेगा की बड़े होकर राजकुमार मालूशाही को इस विवाह के बारे में कुछ बताया न जाए और राजुला को उसके पिता के पास वापस भेज दिया जाए। अपने पति को खोने से पीड़ित रानी ने भी उनकी बात मान ली। 

समय का पहिया चलता रहा और राजुला मालूशाही दोनों बड़े हो गए। एक दिन राजुला बातों ही बातों में अपनी माँ से कहती है की उसका विवाह बैराठ में ही करना। जिसे सुन गांगुली परेशान हो जाती है और राजुला की बातों को ताल देती है। समय कुछ और बीता और हर तरफ राजुला की खूबसूरती के चर्चे होने लगे। और फिर एक दिन हुण देश के राजा ऋषिपाल की नजर राजुला पर पड़ी और उसने राजुला को देखते ही व्यापारी के आगे विवाह का प्रस्ताव रख दिया और धमकी भी दी की अगर उसका विवाह राजुल से नहीं हुआ तो वो उसके देश को उजाड़ देगा। 

एक तरफ बैराठ में बैठे मालूशाही के सपने में राजुल आती है और वो भी उसके रूप पर मोहित होकर सपने में ही उसे वचन दे बैठता है कि एक दिन वो उससे विवाह करेगा। वही दूसरी और राजुला को भी सैम सपना आता है। और उसके मन में बैराठ जाकर मालूशाही से मिलने की इच्छा जागरूक होती है। इस दौरान राजुला को पता चलता है कि पिता व्यापार के लिए बैराठ जा रहे हैं. तो राजुला भी उसके साथ चलने की ज़िद पर अड़ जाती है। फिर दोनों बाप-बेटी बैराठ के लिए निकाल जाते है। बागेश्वर के बागनाथ मंदिर पहुंचने पर राजुला मालुशाही को देखती है और उसे पता चलता है कि मालुशाही रोज सुबह अग्नयारी देवी के दर्शन के लिए आता है. एक दिन राजुल पिता से कहकर अग्नयारी देवी के दर्शन के लिए चली जाती है। वहां रोज की तरह मालुशाही भी आता हैं और दोनों प्रेमियों का मिलन होता है। मालुशाही राजुला को वचन देता हैं कि वह एक दिन उसे ब्याहने दारमा जरूर आएंगे और ऐसा कहकर वो राजुला को प्रेम की निशानी के तौर पर मोतियों की माला पहना देते हैं। दर्शन करके जब राजुला अपने पिता के पास वापस आती है तब सुनपति के बार-बार पूछने पर भी राजुला उसे नहीं बताती की ये मोतियों की माला उसको किसने दी कोई जवाब न मिलने पर सुनपति गुस्से में व्यापार का काम आधे में ही छोड राजुला को लेकर दारमा लौट जाता हैं. घर पहुंचकर वो राजुला का विवाह ऋषिपाल से तय कर देता हैं। इस बात से परेशान राजुला खुद ही बैराठ के सफर पर निकल पड़ती है. उधर बैराठ में मालुशाही के राजुला से मिलने जाने और उससे ही ब्याह करने की जिद्द की वजह से मालुशाही को 12 साल तक सुलाने वाली नींद की गोली खिला दी जाती है. सात रातों का बेहद मुश्किल सफर तय कर राजुला बैराठ आती है और सोते हुए मालुशाही को उठाने की कोशिश करती है, लेकिन दवाई के तेज असर से वह उठ नहीं पाता. तब राजुला मालुशाही को हीरे की अंगुठी पहनाकर एक पत्र उसके सिरहाने रख रोते-रोते अपने देश लौट जाती है. नींद से जागने पर मालुशाही हीरे की अंगूठी और वह पत्र देखता है जिसमें राजुला लिखती है कि मालु मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू नींद में था, अगर तू मुझसे प्यार करता है तो मुझे लेने हूण देश आना. मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं ये पढ़कर मालुशाही राजुला को लेने निकल पड़ता है.

मालुशाही राजुला के लिए अपने राजपाट को छोड़कर गुरु गोरखनाथ की शरण ले लेता है. मालुशाही का प्रेम देख गुरु गोरखनाथ उनकी मदद के लिए  तैयार हो जाते हैं. वह मालूशाही को दीक्षा देते हैं. इसके बाद मालुशाही गुरु गोरखनाथ का आशीर्वाद लेकर साधु के वेश में राजुला को लेने हूण देश के लिए निकल पड़ते हैं. साधु के वेश में मालुशाही घूमते-घूमते ऋषिपाल के महल पहुंचता हैं. वहां नवविवाहित राजुला जब सोने के थाल में भिक्षा लेकर आती है तब उसे देखते ही मालुशाही अपना साधु का वेश उतार फेंकता हैं और कहता हैं कि राजुला मैंने तेरे लिए ही साधु वेश धरा है, मैं तुझे यहां से लेने आया हूं। 

जैसे ही ऋषिपाल को पता चलता है कि बैराठ का राजा मालूशाही आया है तो वह उसे खीर में जहर देकर मार डालता है मालूशाही की मृत्यु की खबर सुनते ही  राजुला अधमरी सी हो जाती है और वही गिर पड़ती है। मालूशाही की मृत्यु की खबर जब गुरु गोरखनाथ को मिलती है तो वो बिना समय गवाए हुण देश निकल पड़ते है, वहां पहुंचकर गुरु गोरखनाथ अपनी विद्या से मालूशाही को फिर से जीवित कर देते है। इसके बाद मालूशाही और ऋषिपाल के बीच युद्ध में  मालूशाही ऋषिपाल को हरा कर अपने प्यार राजुला के साथ विवाह कर उसे बैराठ ले जाता है।