Yash Chopra: महान फिल्म निर्माता यश चोपड़ा का 93वां जन्मदिन है, इस मौके पर हिंदी फिल्म जगत एक ऐसे शख्स को याद कर रहा है, जिसने प्रेम, भावनाओं और कहानी कहने में अपने गहरे विश्वास से बॉलीवुड में क्रांति ला दी। ‘रोमांस के बादशाह’ के रूप में मशहूर यश चोपड़ा का निर्माता-निर्देशक के रूप में पांच दशक से भी लंबा शानदार करियर रहा। इस दौरान उन्होंने भारतीय सिनेमा पर अमिट छाप छोड़ी।
27 सितंबर, 1932 को लाहौर में जन्मे यश चोपड़ा ने अपने करियर की शुरुआत बड़े भाई बी.आर. चोपड़ा के सहायक के रूप में की थी। उन्होंने 1959 में फिल्म “धूल का फूल” से निर्देशन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने 1961 में “धर्मपुत्र”, 1965 में “वक़्त”, 1969 में “इत्तेफाक” और “आदमी और इंसान” जैसी फिल्में बनाईं। 1973 में उन्होंने “दाग”, 1975 में “दीवार”, 1976 में “कभी-कभी”, 1978 में “त्रिशूल” और 1979 में “काला पत्थर” सहित कई हार्ड-हिटिंग ड्रामा और एक्शन फिल्मों का निर्देशन किया।
अगले दशक में उन्होंने 1981 में “सिलसिला, 1985 में “फासले”, 1988 में “विजय” और 1989 में रोमांटिक ब्लॉकबस्टर “चांदनी” बनाई। यश चोपड़ा ने 1991 में “लम्हे” और 1993 में “डर” के साथ रचनात्मक सीमाओं को आगे बढ़ाया। छोटे से ब्रेक के बाद उन्होंने 1997 में “दिल तो पागल है” के साथ वापसी की। सात साल बाद, 2004 में उन्होंने सीमा पार की प्रेम कहानी “वीर-जारा” का निर्देशन किया। उनकी अंतिम फिल्म 2012 का रोमांटिक ड्रामा “जब तक है जान” थी।
यश चोपड़ा ने बॉलीवुड में सिनेमा की कहानी को हिंसा और प्रतिशोध से हटाकर रोमांस, मानवीय भावनाओं और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों पर केंद्रित भावपूर्ण कहानियों की ओर मोड़ने में अहम भूमिका निभाई। उनकी फिल्में अपनी काव्यात्मक कथावस्तु, मनमोहक दृश्यों, अविस्मरणीय संगीत और सशक्त महिला पात्रों के लिए जानी जाती थीं। चाहे वो “कभी कभी” की भावपूर्ण लालसा हो, “सिलसिला” की भावनात्मक जटिलता, या “वीर-जारा” का शाश्वत प्रेम, यश चोपड़ा की फिल्मों ने प्रेम के कई रंगों को उकेरा।
अपने करियर में यश चोपड़ा ने छह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 11 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते। इनमें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी शामिल है। भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 2001 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिले। इनमें स्विस सरकार का दिया पुरस्कार भी शामिल है।
चोपड़ा ने 1970 में यशराज फिल्म्स की स्थापना की, जो भारत का सबसे बड़ा और सबसे असरदार प्रोडक्शन हाउसों में एक बन गया। उनके नेतृत्व में यशराज फिल्म्स ने कई नई प्रतिभाओं को तराशा। ये प्रोडक्शन हाउस उच्च-गुणवत्ता वाली और भावनात्मक रूप से असरदार फिल्में बनाने के लिए मशहूर हुआ। उनकी फिल्में भारत के अलावा विदेश में भी लोकप्रिय हुईं।
उनके निर्देशन में बनी आखिरी फिल्म, “जब तक है जान” थी। इसमें शाहरुख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा मुख्य भूमिकाओं में थे। फिल्म अक्टूबर 2012 में उनके निधन के कुछ समय बाद रिलीज हुई। ये फिल्म एक ऐसे फिल्म निर्माता की मार्मिक विदाई थी, जिसका करियर प्रेम के मूल विषय के साथ शुरू हुआ और जीवन चक्र पूरा करते हुए प्रेम के साथ खत्म हो गया।
93वें जन्मदिन पर, भारतीय फिल्म जगत और दुनिया भर के प्रशंसक यश चोपड़ा को न सिर्फ एक फिल्म निर्माता के रूप में, बल्कि एक ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में याद कर रहे हैं, जिनका मानना था कि भावनाओं और रिश्तों पर आधारित कहानियां कभी चलन से बाहर नहीं होंगी। उनकी विरासत उनकी फिल्मों, उनके स्टूडियो और उनके कालातीत सिनेमा से प्रभावित अनगिनत दिलों में जिंदा है।