मेरठ के स्टांप घोटाले में आज अधिकारी तलब: प्राक्कलन विधानसभा समिति स्टांप घोटाले के मामले की जांच रिपोर्ट का अवलोकन करेगी, मेरठ में 1000 लोगों के फर्जी स्टाम्प पर रजिस्ट्री कराने का मामला सामने आया है। 7.20 करोड़ के फर्जी स्टाम्प पर 100 करोड़ से ज्यादा के मकान और खाली प्लाट की रजिस्ट्री करवाई गई।
मेरठ के स्टांप घोटाले में एडीएम वित्त सूर्यकांत त्रिपाठी, एआईजी स्टांप ज्ञानेंद्र कुमार और सभी छह रजिस्ट्रार को लखनऊ में प्रमुख सचिव ने तलब कर लिया है। 10 दिसंबर को प्राक्कलन विधानसभा समिति स्टांप घोटाले के मामले की जांच रिपोर्ट का अवलोकन करेगी।
आपको बता दे मेरठ में 1000 लोगों के फर्जी स्टाम्प पर रजिस्ट्री कराने का मामला सामने आया है। 7.20 करोड़ के फर्जी स्टाम्प पर 100 करोड़ से ज्यादा के मकान और खाली प्लाट की रजिस्ट्री करवाई गई। अभी तक 997 लोग ऐसे सामने आ चुके हैं, जिनके साथ फर्जीवाड़ा हुआ। फर्जी स्टाम्प में ट्रेजरी की फर्जी मुहर और गलत सीरियल नंबर जारी किए गए। शासन को एआईजी स्टाम्प ने रिपोर्ट भेजी है। इस मामले में जो भी फर्जी स्टाम्प मिले हैं, वे सभी एक ही वकील के जरिए जारी किए गए हैं। वकील फिलहाल फरार है। उस पर 25 हजार का इनाम घोषित हो चुका है।
पूरा मामला पढ़िए
उत्तर प्रदेश के स्टांप और न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन मंत्री रवींद्र जायसवाल को 2023 में मेरठ में हुए दो बैनामों की शिकायत मिली। कहा गया कि इनमें जो स्टांप लगे हैं, वे फर्जी हैं। मंत्री रविंद्र जायसवाल ने इस संबंध में लखनऊ में उच्च अधिकारियों से जवाब मांगा तो मेरठ में जांच शुरू हुई। दोनों बैनामों में लगे स्टांप फर्जी मिलने पर पिछले तीन साल के बैनामों की जांच शुरू हुई। तीन साल के बैनामों में लगे स्टांप चेक किए गए तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
जिसके बाद 997 बैनामों में फर्जी स्टांप लगा दिए गए और रजिस्ट्री ऑफिस के अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी। इन सभी बैनामों में एक बात कॉमन ये थी कि ये सभी बैनामे एक ही अधिवक्ता विशाल वर्मा ने कराए थे। मेरठ उपनिबंधन कार्यालय के कनिष्ठ सहायक निबंधन प्रदीप कुमार ने सिविल लाइन थाने में बैनामों कराने वालों के नाम 22 मई, 2024 को रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इसके बाद सभी 997 लोगों को स्टांप में कमी बताकर नोटिस जारी कर दिए गए।
इसमें जितने के स्टांप लगाए गए थे, उनका चार गुना अर्थदंड और 18 प्रतिशत सालाना ब्याज भी लगाया गया। नोटिस जाते ही बैनामा कराने वाले लोगों की नींद उड़ गई। उनकी समझ में ही नहीं आया कि ये सब हुआ क्या है। उन्होंने तो अधिवक्ता विशाल वर्मा को स्टांप के पूरे पैसे दिए थे,फर्जी स्टांप घोटाले में ठगे जाने वाले अब तक 997 लोग इस मकड़जाल में फंस चुके हैं। वे स्टांप चोरी और धोखाधड़ी के मुलजिम बन चुके हैं।
लाखों रुपए दोबारा स्टांप शुल्क और चार गुना अर्थदंड दे रहे हैं। ये तो वे लोग हैं, जिनके बैनामों की जांच में फर्जी स्टांप पकड़ में आ चुके हैं। 2015 से 2020 तक हुए बैनामों की भी जांच चल रही है। पता नहीं कितने ओर ऐसे बेकसूर अभी ओर इस मकड़जाल में फंसे होंगे।
वही उपनिबंधन कार्यालय द्वारा कराई गई जांच में साफ हो चुका था कि ये सभी बैनामे अधिवक्ता विशाल वर्मा ने कराए हैं। इसके बाद भी रिपोर्ट में सिर्फ एक अधिवक्ता लिखा गया, विशाल को नामजद नहीं किया गया। विशाल वर्मा ने इस मुकदमे के बाद कोर्ट में अग्रिम जमानत का प्रार्थना पत्र भी दिया। लेकिन, पुलिस की तरफ से रिपोर्ट दे दी गई कि वह तो नामजद ही नहीं है, जिसके बाद विशाल बेफ्रिक हो गया।
जिन 997 लोगों को स्टांप में कमी बताकर नोटिस जारी किए गए, वे अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर लगाते रहे। अधिकारियों ने साफ कह दिया कि ये रिकवरी तो जमा करनी होगी। देर करोगे तो पेनल्टी बढ़ती जाएगी। लोगों ने डीएम कार्यालय से लेकर कमिश्नर और लखनऊ में बैठे अधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
997 लोगों में से 400 से ज्यादा ने मजबूर होकर स्टांप शुल्क और पेनाल्टी जमा कर दी। उनका कहना है कि एक तो बैनामा कैंसिल हो जाता ऊपर से जेल भी जा सकते थे। विशाल वर्मा का तो कुछ बिगड़ा नहीं लेकिन उनका नुकसान हो जाता। विशाल की पहुंच बहुत ऊपर तक है, इसलिए वो इतना बड़ा घोटाला करता रहा ओर किसी को पता भी नहीं चला।
मजबूर लोगों ने बनाया स्टांप घोटाला संघर्ष समिति मोर्चा
स्टांप घोटाला संघर्ष समिति मोर्चा के अध्यक्ष संजीव कुमार अग्रवाल बताते हैं कि कहीं से भी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने लोगों के साथ मिलकर सारे पीड़ितों को जोड़ना शुरू किया। इसके बाद स्टांप घोटाला संघर्ष समिति मोर्चा का गठन किया। अब वे लोग एकजुट होकर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
अब तक की जांच में 7 करोड़ 20 लाख रुपए के स्टांप का मामला पकड़ में आ चुका है। गुपचुप तरीके से पहले फर्जी स्टांप छपवाए गए फिर इनको बैनामा कराने वालों को बेच दिया गया।