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Kohli Test retirement: क्रिकेट का ऐसा 'योद्धा' जिसने कभी हार नहीं मानी, कभी सीखना नहीं छोड़ा

ये वो संकेत है जो दिग्गज बल्लेबाज विराट कोहली ने दुनिया को बार-बार दिया। उन्होंने अपने अंदाज से याद दिलाया ये उनका बल्ला है जो उनकी बात पर खरा उतरता है। उन्होंने न अपने आलोचकों को जवाब दिया, न नकारात्मक लोगों को और न ही मीडिया को... उन्होंने बस अपने बल्ले से रनों को बहने दिया।

विराट कोहली मैदान पर पारी दर पारी दुनिया को अहसास कराते रहे कि हार मानना उनकी फितरत नहीं है। जब भी उनकी फॉर्म पर सवाल उठे तो जवाब बल्ले से निकली बड़ी पारी ने दिया। हर संदेह को उन्होंने अपने बल्ले की धमक से दरकिनार कर दिया। टीम इंडिया को जीत दिलाने की भूख उनमें हर वक्त साफ तौर पर नजर आई। विराट ने मैदान पर हर बार आंखों में बेहतरीन प्रदर्शन की आग, दिल में जोश का तूफान और टीम को जीत दिलाने का जज्बा साथ लेकर कदम रखा।

आक्रामक तेवर तो विराट के लिए किसी हथियार की तरह हैं। ऐसा हथियार जिससे उन्हें हमेशा फायदा मिला। उन्होंने अपने बल्ले की धार को तेज किया और बल्ले से जवाब देने के बाद खामोशी ओढ़ ली। इस खामोशी को लोगों ने देर तक और दूर तक सुना।

2014 में ऑस्ट्रेलियाई मैदानों पर उनका मुश्किल इम्तिहान हुआ। उन्हें टेस्ट टीम की बागडोर सौंपी गई। दौरे पर उन्होंने एक बल्लेबाज के तौर पर भी खुद को साबित किया और 86.50 की शानदार औसत से 692 रन बनाए। वहीं 2018 में इंग्लैंड में उनके लिए सुनहरा लम्हा आया। कोहली ने एक किंग की तरह हर मुश्किल और हर चुनौती का बखूबी सामना किया। वे 59.30 की औसत से 593 रन बनाकर सीरीज में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज बने। उस साल मैदान पर उनकी बादशाहत दिखी। विदेशी मैदानों पर अलग-अलग परिस्थितियों में उन्होंने ऐसा चमकदार प्रदर्शन किया जो उनसे पहले किसी भारतीय बल्लेबाज ने नहीं किया था।

विराट कोहली के नाम टेस्ट क्रिकेट में सात दोहरे शतक भी हैं। ये किसी भी भारतीय द्वारा लगाए गए सबसे ज़्यादा दोहरे शतकों का रिकॉर्ड है। 2019 में उनके बल्ले से करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी निकली। उन्होंने पुणे में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नाबाद 254 रन बनाए।

विराट कोहली ने साबित किया कि वे सिर्फ बल्ले से ही नहीं बल्कि कप्तान के तौर पर भी सुपरहिट हैं। उन्होंने 2018-19 में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम को बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में सबसे ऐतिहासिक टेस्ट जीत दिलाई। ये एक कप्तान के तौर पर 2014 में मिले घावों पर मरहम था। ये पहली बार था जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर टेस्ट सीरीज में मात दी। इस जीत में विराट के आक्रामक तेवरों से भरी कप्तानी का अहम रोल रहा।

68 टेस्ट मैचों में 40 जीत के साथ, कोहली 58.82 की जीत प्रतिशत के साथ भारत के अब तक के सबसे सफल टेस्ट कप्तान बन गए। उनकी कप्तानी सिर्फ संख्या नहीं बल्कि टीम की बदली सोच को साफ तौर पर दिखाती है। उन्होंने फिटनेस को प्राथमिकता देने वाली संस्कृति को बढ़ावा दिया, अपने तेज गेंदबाज़ों का पहले से कहीं ज़्यादा समर्थन किया। साथ ही उन्होंने घरेलू जमीन हो या फिर विदेशी मैदान हर जगह जीत के जज्बे और पूरे दमखम के साथ मैदान पर उतरने का सबक टीम को सिखाया।

विराट ने क्रिकेट की दुनिया में कदम रखते ही अहसास कराना शुरू कर दिया था कि वे साधारण खिलाड़ी नहीं बल्कि एक लीडर हैं। 2008 में अंडर-19 विश्व कप में इस युवा खिलाड़ी के सितारे चमके। टूर्नामेंट में उन्होंने न सिर्फ एक बल्लेबाज के तौर पर दबदबा कायम किया बल्कि टीम को खिताब जिताकर एक कप्तान के तौर पर अपनी काबिलियत साबित की।

2011 में भारतीय टीम ने 28 साल बाद वनडे क्रिकेट का विश्व कप जीता। उस वक्त विराट को इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखे महज तीन साल ही हुए थे। टीम इंडिया के चैंपियन बनने के बाद विराट कोहली क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर को मैदान पर अपने कंधों पर बैठाए दिखे। तब लोगों ने कहा था कि वे सचिन को नहीं, बल्कि उनकी विरासत को कंधों पर उठाए हैं।

विराट उनकी सोच को सही साबित करते हुए अपने बल्ले से रनों की बरसात करते रहे। लोग फिर कहते दिखे- एक सचिन जा रहा है, तो दूसरा सचिन आ रहा है। क्रिकेट मैदान पर कोहली का लगातार विराट होता कद भारतीय क्रिकेट की बदलती तस्वीर की ओर भी इशारा कर रहा था।

पश्चिमी दिल्ली की तंग गलियों और भीड़ भरी कॉलोनियों के बीच पल-बढ़ रहा एक छोटा लड़का बड़े सपने बुन रहा था। क्रिकेट कोच राजकुमार शर्मा ने इस बच्चे की तकनीक और संयम को पहचाना और उसके सपनों को शक्ल देने की शुरूआत की। क्रिकेट के गलियारों से जुड़े लोग और विराट के अंडर-16 और अंडर-19 कोच भी याद करते हैं कि कैसे वो दूसरे उभरते क्रिकेटरों से एकदम अलग थे। बचपन में भी विराट के इरादे मजबूत थे। हारना उन्हें पसंद नहीं था। रनों की भूख ऐसी कि खत्म ही नहीं होती थी। कोच समझ गए थे कि ये लड़का थमने वाला नहीं है। बहुत दूर तक जाएगा।

कहते हैं कि महानता अक्सर दुख से पैदा होती है। विराट कोहली के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उन्हें एक ऐसा गहरा झटका लगा जो क्रिकेट की गेंद से होने वाले शारीरिक दर्द से कहीं ज़्यादा था। उन्होंने सिर्फ़ 18 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया। ये एक ऐसा पल जो किसी को भी तोड़ सकता था। हालांकि विराट ने खामोश रहना चुना। पिता के गुजरने के अगले दिन शोक मनाने के बजाय वे रणजी मैच खेलने मैदान पर उतरे और अपनी टीम के लिए महत्वपूर्ण रन बनाए। ये सिर्फ़ क्रिकेट से जुड़ा विराट का फ़ैसला नहीं था बल्कि ये बात उनके बुलंद इरादों को बयां कर रही थी।

इस दर्द और जख्म ने विराट को लोहे जैसे मजबूत इरादों वाला शख्स बना दिया। क्रिकेट के मैदान पर बल्ला थामकर विराट ने अनगिनत बार इसकी झलक दुनिया को दिखाई। हालांकि उनके इस सफर में चुनौतियां कम नहीं थीं। विराट को जब 2008 में भारतीय टीम में चुना गया तो कई लोगों ने इस कदम पर सवाल उठाए। हालांकि उस वक्त बीसीसीआई की राष्ट्रीय चयन समिति के अध्यक्ष दिलीप वेंगसरकर ने विराट पर अपना पूरा भरोसा दिखाया। उन्होंने विराट के खेल को उस नजरिए से देखा जिसे बाकी लोग अनदेखा कर रहे थे। उन्हें यकीन था कि विराट एक ऐसे खिलाड़ी के तौर पर उभरेंगे जो टीम इंडिया की जर्सी को अपने शरीर से शायद ही कभी जुदा होने दें।

टीम इंडिया की तरफ से अपने पहले मैच में श्रीलंका के खिलाफ विराट कोहली सिर्फ 12 रन ही बना पाए। विराट की ये पारी भले ही सुर्खियां बटोरने में नाकाम रही लेकिन वे उस टीम से जरूर जुड़ गए जहां वे पहुंचना चाहते थे। जल्द ही उन्होंने इस बात को साबित भी कर दिया। क्रिकेट के मैदान से परे विराट कोहली एक ब्रांड बन गए। विज्ञापन की दुनिया हो, फैशन हो या फिर सोशल मीडिया, वे हर तरफ छाए दिखे। विराट मॉर्डन इंडिया के ऐसे प्रतीक बन गए जो दमदार हो, बेबाक हो और खास हो। हालांकि ये शोहरत विराट के सिर नहीं चढ़ी।

उनकी पहचान हमेशा एक ऐसे लड़के की बनी रही जो सिर्फ बल्ला थामे रनों का अंबार लगाना चाहता है। इंस्टाग्राम पर विराट कोहली के 27.2 करोड़ फॉलोअर्स हैं। वे दुनिया भर में तीसरे सबसे ज़्यादा फ़ॉलो किए जाने वाले स्पोर्टिंग आइकन हैं। उनसे आगे सिर्फ़ क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मेसी हैं। रोनाल्डों के 65.3 करोड़, जबकि मेसी के 50. 4 करोड़ फॉलोअर्स हैं।

विराट की दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के उनके पोस्ट ने 1.7 करोड़ से ज्यादा लाइक्स बटोरे। वहीं इस पोस्ट को लगभग 40 लाख लोगों ने शेयर किया और 13 लाख लोगों ने इस पर कमेंट किया। 36 साल के विराट कोहली न सिर्फ क्रिकेट का चेहरा बन चुके हैं, बल्कि एक-दूसरे से होड़ लगाने में जुटे मशहूर ब्रांडों के एंबेसेडर भी हैं।

रिपोर्टों के मुताबिक विराट कोहली की कुल संपत्ति 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है। ये उन्हें भारत की सबसे अमीर हस्तियों में से एक बनाता है। मिलेनियल विराट कोहली के प्रशंसक सिर्फ ज़ेन ज़ी नहीं बल्कि हर उम्र के लोग हैं। उन्हें लोग रोल मॉडल मानते हैं क्योंकि उनके लिए हमेशा से ही फैमिली फर्स्ट रही है। विराट कभी भी ऐसे ब्रांड का प्रमोशन नहीं करते जिनके सिद्धांत उनकी सोच से मेल नहीं खाते।

विराट को हर विज्ञापन के लिए 5 करोड़ रुपये से लेकर 10 करोड़ रुपये तक मिलते हैं। उनके ब्रांड पोर्टफोलियो में एमआरएफ, मिंत्रा, ऑडी और ब्लू ट्राइड फूड्स शामिल हैं। फिटनेस आइकन और पूरी तरह शाकाहारी विराट कोहली की लाइफस्टाइल ने खेल पोशाक और सेहत के लिए जागरूकता बढ़ाने वाले ब्रांडों और प्रशंसकों के बीच उनकी अपील को मजबूत किया है। 9230 टेस्ट रन, 30 टेस्ट शतक और घरेलू और विदेशी ज़मीन पर यादगार जीत के साथ, कोहली का टेस्ट करियर अब खत्म हो गया है।

चमकदार टेस्ट सफर पर विराट कोहली ने बिना किसी फेयरवेल मैच के फुलस्टॉप लगा दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर टेस्ट से संन्यास का ऐलान किया। विराट के करोड़ों दीवानों को पता ही नहीं चला कि 11 साल बाद अपने घरेलू मैदान, दिल्ली के अरुण जेटली स्टेडियम पर, विराट ने रिकॉर्ड संख्या में मौजूद अपने प्रशंसकों के सामने सफेद कपड़ों में आखिरी बार मैच खेला।

विराट के तौर पर टेस्ट क्रिकेट से एक ऐसे क्रिकेटर की विदाई हो गई जिसने टी20 क्रिकेट की बढ़ती कामयाबी के दौर में टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक प्रारूप की चमक को बनाए रखा। मैदान पर अपनी आक्रामकता और जश्न मनाने के अपने अंदाज से गेंदबाज को ग्रहण लगाने वाला विराट का जुनून अब टेस्ट क्रिकेट में नहीं दिखेगा।

लोगों ने क्रिकेट के एक ऐसे छात्र के दीदार किए जिसने सीखना अब तक नहीं छोड़ा। विराट टीम इंडिया की नीली जर्सी पहने मैदान पर नजर आते रहेंगे। टेस्ट क्रिकेट के बाद दूसरे सबसे खास माने जाने वाले वनडे फॉर्मेट में नए मुकामों को छूते रहेंगे। ये वो फॉर्मेट है जिसने विराट कोहली को चेज मास्टर का तमगा दिलाया।

18 नंबर की जर्सी की खास पहचान क्रिकेट की दुनिया में हमेशा बनी रहेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि विराट सिर्फ भारतीय क्रिकेट की जर्सी पहनते ही नहीं बल्कि अपने देश के लिए दिल से सोचते हैं और उसे जीते हैं। टेस्ट क्रिकेट में विराट का सफर थमने का मतलब ये नहीं कि वो मैदान पर थम गए हैं। ये तो बस एक पड़ाव भर है। अगली मंजिल किंग कोहली का इंतजार कर रही है।