हरेला पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। हरेला पर्व से उत्तरराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सावन का महीना शुरू होता है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा देता है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कई पर्व मनाये जाते हैं, जिनमें से एक हरेला है। हरेला पर्व सावन के महीने में मनाया जाता है। इस पर्व में प्रकृति पूजन किया जाता है और पौधे भी रोपे जाते हैं। इस तरह यह पर्व पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ है।
पहाड़ी राज्य में हरेला से सावन की शुरुआत होती है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्व हरेला को यहां के कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। कुमाऊं में हरेला से ही श्रावण या सावन माह का आरंभ माना जाता है। हरेला का अर्थ ही हरा-भरा होना है। इसलिये हरेला पर्व में यहां पौधारोपण भी किया जाता है।
कई गांवों में हरेला मंदिर में पूरे गांव के लिए एकसाथ बोया जाता है। 10वें दिन हरेले को काटकर सबसे पहले घर के मंदिर में चढ़ाया जाता है। फिर घर की सबसे बुजुर्ग टीका-अक्षत लगाकर सभी के सिर पर हरेले के तिनके को रखते हैं। हरेला यानी हरियाली, पहाड़ कुदरत के कितना करीब है, इस पर्व में झलकता है।
उत्तराखंड में सावन की पहली तिथि को यह पर्व मनाया जाता है, पर्व से 9 दिन पहले घरों में मिट्टी या बांस की बनी टोकरी में हरेला बोया जाता है। टोकरी में एक परत मिट्टी की, दूसरी परत में कोई भी सात अनाज जैसे गेहूं, सरसों, जौं, मक्का, मसूर, पहाड़ी दाल भट्ट बिछाई जाती है। इसी तरह दोनों की तीन-चार परत तैयार कर टोकरी को कहीं छाया में रख दिया जाता है। त्योहार तक टोकरी में अनाज की बाली आ जाती है। यही हरेला है। कई गांवों में देवता के मंदिर में पूरे गांव के लिए इसे एक साथ बोया जाता है। माना जाता रहा है कि जितनी ज्यादा बालियां, उतनी अच्छी फसल।