झारखंड के सभी प्रमुख बाजारों में सरहुल त्योहार की तैयारी के लिए लोगों की भारी भीड़ देखी जा रही है। ज्यादातर लोग पारंपरिक साड़ी, गमछा और शर्ट की मांग कर रहे हैं क्योंकि पूरा राज्य आदिवासी वसंत त्योहार को मनाने के लिए तैयार है। ये त्योहार प्रकृति की पूजा के लिए मनाया जाता है। प्रकृति के करीब होने के कारण ये जनजातियां पेड़ों और प्रकृति की पूजा के साथ त्योहार की शुरुआत करती हैं। सरहुल त्योहार के उत्सव के बाद आदिवासी समुदाय फिर से फसल की बुआई में लग जाता है।
सरहुल आदिवासियों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। ओरांव, मुंडा और हो जनजातियां पूरे जोश से ये त्योहार मनाती हैं। इस मौके पर आदिवासी युवा केकड़े पकड़ते हैं और फिर उन्हें ग्राम देवता को चढ़ाते हैं। सरहुल के मौके पर विशेष प्रसाद भी बनाया जाता है, जिसे बाद में अन्य पारंपरिक जनजातीय व्यंजनों के साथ लोगों के बीच बांटा जाता है। उत्सव के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो इसके लिए जिला प्रशासन ने खास इंतजाम किए हैं। सरहुल हर साल हिंदू कैलेंडर के पहले महीने यानी 'चैत्र' महीने के तीसरे दिन मनाया जाता है।