15 अगस्त, 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। आजादी के इस खास मौके पर सबसे पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर ध्वजारोहण किया, तभी से हर साल 15 अगस्त के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहीं से ही ध्वजारोहण की परंपरा की भी शुरुआत हुई। इस खास अवसर पर हर साल देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर ध्वजारोहण करते हैं।
वहीं क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या अंतर है? कई लोग इन दोनों को एक जैसा मानते हैं लेकिन इनका अर्थ अलग है। इसके अलावा इनकी परंपरा और ऐतिहासिक महत्व भी एक दूसरे से अलग है। स्वतंत्रता दिवस के खास अवसर पर लाल किले पर ध्वजारोहण किया जाता है। वहीं जब तिरंगे को लहराया जाता है, तो इसे फहराना कहते हैं। ध्वजारोहण 15 अगस्त को किया जाता है। वहीं 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति द्वारा झंडा फहराया जाता है।
15 अगस्त, 1947 के खास अवसर पर ब्रिटिश साम्राज्य के झंडे को नीचे उतारकर भारत का राष्ट्रीय झंडा उपर चढ़ाया गया था। राष्ट्रीय ध्वज को जब नीचे से ऊपर की ओर ले जाया जाता है, तो उसे ध्वजारोहण कहा जाता है। यह परंपरा तब से चलती आ रही है। इसके अलावा 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडे को फहराया जाता है। इसमें हमारा राष्ट्रीय ध्वज पहले से ही खंभे पर बंधा होता है। इसमें फूलों की पंखुड़ियां भी होती हैं। इस कारण जब तिरंगे को फहराया जाता है तो ऊपर से पुष्प वर्षा होती है। ध्वजारोहण प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है। वहीं राष्ट्रपति तिरंगा फहराता है। ध्वजारोहण आजादी और गुलामी से मुक्ति का प्रतीक है। वहीं तिरंगे का फहराना संविधान लागू होने और राष्ट्र की एकता का प्रतीक है।