शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व जब अपने अंतिम चरण में होता है तो माता के नौवें स्वरूप की आराधना की जाती है. देवीपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही सिद्धियों की प्राप्ति की थी. साथ ही मां के इसी स्वरूप से ही भगवान शिव को आधा शरीर देवी का प्राप्त हुआ था जिसे अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है. माना जाता है कि, जो भी व्यक्ति सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से माता के इस स्वरूप की पूजा करता है तो उसे सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है. साथ ही उसके सभी बिगड़े हुए काम बन जाते हैं और धन की कमी भी नहीं रहती.
हिंदू पंचांग के अनुसार नवमी तिथि की शुरुआत 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार को 12:06 बजे से होगी जिसका समापन 12 अक्टूबर को दिन शनिवार 10:58 बजे पर होगा.
मां सिद्धिदात्री को और भी कई सारे नामों से जाना जाता है. इनमें अणिमा, महिमा, ईशित्व, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य,वाशित्व, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि शामिल हैं.
मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर विराजमान हैं और इनका वाहन भी सिंह ही है. उनकी चार भुजाएं हैं. माता के दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र है वहीं ऊपर वाले हाथ में गदा है. जबकि बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल और ऊपर वाले हाथ में शंख है. जैसा कि माता के नाम से ही पता चलता है कि वे सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. उनके पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह 8 सिद्धियां हैं.