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बच्चों में एंग्जाइटी: क्या हैं इसके कारण और लक्षण, जानें इससे निपटने के उपाय

आजकल के व्यस्त जीवन और मानसिक दबाव के बीच बच्चों में एंग्जाइटी (चिंता) का समस्या बढ़ती जा रही है। बच्चे अपने घर, स्कूल और सामाजिक जीवन में कई तरह के दबावों का सामना करते हैं, जो उनकी मानसिक स्थिति पर असर डाल सकते हैं। एंग्जाइटी केवल बड़े लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों में भी हो सकती है। जानिए बच्चों में एंग्जाइटी के कारण, लक्षण, और इससे निपटने के उपाय।

बच्चों में एंग्जाइटी के कारण
बच्चों में एंग्जाइटी के कई कारण हो सकते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं:

परिवार में बदलाव
परिवार में किसी सदस्य की बीमारी, तलाक, या मृत्यु जैसी घटनाएं बच्चों में मानसिक तनाव और एंग्जाइटी का कारण बन सकती हैं। ऐसे बदलाव बच्चों को असुरक्षित और चिंतित महसूस करवा सकते हैं।

शिक्षा से संबंधित दबाव
स्कूल की पढ़ाई, परीक्षा का तनाव, और शिक्षकों से अपेक्षाएं बच्चों पर दबाव डाल सकती हैं। इस तरह का दबाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।

सामाजिक दबाव
बच्चों को दोस्तों से मिलते-जुलते रहने का दबाव, या किसी से तुलना की जाने वाली स्थिति में रहना, उन्हें एंग्जाइटी का शिकार बना सकता है।

पारिवारिक तनाव और संघर्ष
परिवार में असमंजस या झगड़े बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। बच्चों को यह समझ में नहीं आता कि वे क्या करें, और इस कारण से वे चिंतित रहते हैं।

स्वास्थ्य समस्याएं
अगर बच्चे को शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं, तो यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकती हैं, जिससे एंग्जाइटी उत्पन्न हो सकती है।

बुरी घटनाएं या दुर्घटनाएं
कोई दुर्घटना, बलात्कार, हिंसा या किसी भी प्रकार की नकारात्मक घटना का सामना करने के बाद बच्चे एंग्जाइटी महसूस कर सकते हैं।

बच्चों में एंग्जाइटी के लक्षण
बच्चों में एंग्जाइटी के लक्षण वयस्कों से अलग हो सकते हैं। यहां कुछ सामान्य लक्षण दिए गए हैं जिनसे आप पहचान सकते हैं कि बच्चे में एंग्जाइटी हो सकती है:

अत्यधिक डर और चिंता
बच्चों में छोटी-छोटी बातों के बारे में अत्यधिक डर और चिंता दिख सकती है, जैसे स्कूल जाने से डर, परीक्षा के बारे में घबराहट, या अकेले रहने से डर।

बॉडी के लक्षण
एंग्जाइटी के कारण बच्चों में शारीरिक लक्षण भी हो सकते हैं जैसे पेट दर्द, सिर दर्द, जी मिचलाना, और बिना किसी कारण के थकावट महसूस करना।

नींद की समस्याएं
बच्चों को नींद में परेशानी आ सकती है, जैसे रात में डर से जगना, बुरे सपने आना, या सोने में कठिनाई होना।

अत्यधिक चिड़चिड़ापन और गुस्सा
एंग्जाइटी के कारण बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं और छोटे-छोटे मुद्दों पर गुस्सा कर सकते हैं। उनका व्यवहार असामान्य हो सकता है।

सामाजिक अलगाव
एंग्जाइटी वाले बच्चे समाज से कटने लगते हैं। वे दोस्तों से मिलना-जुलना नहीं पसंद करते या सामाजिक गतिविधियों से बचने की कोशिश करते हैं।

नौकरी से संबंधित चिंता
स्कूल में प्रदर्शन को लेकर चिंता या कुछ सीखने की इच्छा में कमी बच्चों को एंग्जाइटी का कारण बन सकती है। यह लक्षण अकसर छोटे बच्चों में देखने को मिलते हैं।

आत्म-निंदा
बच्चे आत्म-संकोच और आत्म-निंदा करने लगते हैं। वे अक्सर खुद को नाकामयाब महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि वे किसी काम के नहीं हैं।

बच्चों में एंग्जाइटी से निपटने के उपाय
सकारात्मक माहौल बनाएं

घर और स्कूल में बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सहायक वातावरण बनाएं। बच्चों को यह महसूस कराएं कि वे किसी भी स्थिति में अपने परिवार से समर्थन पा सकते हैं।

चिंता और डर के बारे में बात करें
बच्चों से उनकी चिंताओं के बारे में बात करें और उन्हें यह बताएं कि डर और चिंता एक सामान्य भावना है। उन्हें यह समझाने में मदद करें कि ऐसे भावनाओं का सामना कैसे किया जा सकता है।

समय देना और सुनना
बच्चे जब किसी चिंता या डर के बारे में बात करते हैं, तो उन्हें ध्यान से सुनें और उनकी भावनाओं को सम्मान दें। उनका दिलासा देना और उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण है।

विश्राम और योगाभ्यास
बच्चों को ध्यान, गहरी साँस लेने की प्रक्रिया, और योग सिखाएं। इससे उनका मानसिक तनाव कम हो सकता है और वे अधिक शांत महसूस करेंगे।

मनोरंजन और खेल
बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। खेल और शारीरिक अभ्यास से तनाव कम होता है और बच्चे खुश रहते हैं।

मानसिक सहायता और काउंसलिंग
अगर बच्चे की एंग्जाइटी गंभीर हो, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ या काउंसलर से मदद लेना जरूरी है। सही मार्गदर्शन और इलाज से बच्चे को मानसिक शांति मिल सकती है।

बच्चों में एंग्जाइटी एक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन सही पहचान और उपायों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। माता-पिता और शिक्षक की भूमिका इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण होती है। बच्चों के साथ साकारात्मक संवाद, सही माहौल, और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने से उनकी चिंताओं और डर को कम किया जा सकता है।