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किसे मिल सकती है इच्छा मृत्यु, भारत में क्या है इसका इतिहास

किसी की जान ले लेने पर मुजरिम को जो जज सजा सुनाता है, जब वही अपनी जान खुद लेने की इच्छा जताने लगे तो समझिए स्थिति विकट है. उत्तर प्रदेश की एक सिविल जज ने कुछ ऐसी ही अर्जी सुप्रीम कोर्ट के सामने लगाई है. बांदा जिले में तैनात महिला सिविल जज ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिठ्ठी लिख इच्छा मृत्यु की मांग की है. महिला जज का आरोप है कि एक डिस्ट्रिक्ट जज ने उनको शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया, शिकायत करने पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई. लिहाजा वह अब अपनी जान खुद लेने पर अमादा हैं. सवाल है कि क्या भारत में इच्छा मृत्यु जायज है, किसे इच्छा मृत्यु मिल सकती है और देश में इसके लिए क्या हा कानून?

इच्छा मृत्यु की जगह कई बार यूथनेसिया शब्द का भी इस्तेमाल किया जाता है. इच्छा मृत्यु की इजाजत है या नहीं, इसको लेकर हमें सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को समझना होगा. कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में पांच जजों की संविधान पीठ ने मार्च 2018 में सम्मान से मरने के अधिकार को भी मौलिक अधिकार माना. जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण ने यूथनेसिया को लागू करने के लिए कुछ गाइडलाइन जारी की. हालांकि यह असाध्य यानी न ठीक होने वाली बीमारियों के लिए ही थी. 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले गाइडलाइंस में कुछ बदलाव किया जिससे इच्छा मृत्यु के अधिकार को आसान बनाया जा सके.