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कतर समझे भारत की दोस्ती का मतलब

Written By:- वेद विलास उनियाल 

कतर में भारतीय नौसेना के सात पूर्व अधिकारियों और एक नाविक को कतर में मौत की सजा सुनाए जाने के बाद देश भर में सनसनी मचना स्वाभाविक है। जैसे ही कतर की एक अदालत ने यह सजा सुनाई सबका ध्यान इस तरफ खींचा है कि आखिर कतर की अदालत ने किस आधार पर या गुनाह पर यह सजा सुनाई है। कतर में ये आठ भारतीय एक साल से कैद है। इनकी गिरफ्तारी का कोई आरोप कतर सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। लेकिन अब कतर की अदालत ने सजा सुनाई है कि इन आठ नौसेनिकौं को इजरायल की जासूसी करने पर सजा सुनाई गई है। कतर में हालांकि इसके ऊपर बडी अदालत है। और इसके ऊपर भी वहां के अमीर को अधिकार है कि वे ऐसी सजा को पलट दे। स्पष्ट है कि यह सजा कतर की एक अदालत ने सुनाई है लेकिन इस देश में अपने आका के निर्देश पर ही ऐसे फैसले देते हैं। खासकर जब मामला इस तरह का हो तो कतर की अदालत इतने आगे नहीं जा सकती। निश्चित है कि इस एक फैसले के साथ कई पहलुओं को जोड़कर देखा जाएगा। खासकर इजरायल और हमास के संघर्ष के बीच भी इस कड़ी को देखा जा रहा है तो उसके अपने निहित कारण है। 

निश्चित भारत सरकार के लिए यह कूटनीति के मंच पर इससे निपटने की अहम जिम्मेदारी है। भारत सरकार ने इस घटना पर कहा है कि नोसैन्य अधिकारियों के बचाव में सभी तरह की कानूनी सलाह ली जा रही है और सरकार अपने स्तर पर वार्ता कर रही है। वैसे भी ये मामला कतर और भारत के बीच उच्च स्तर पर ही निपटना है। जिस अदालत ने फैसला दिया है उसकी वहां ऐसी कोई अहमियत नहीं होती कि अपने स्तर पर ऐसा निर्णय दे सके। ऐसे में यह भी माना जाना चाहिए कि जिस तरह नो सैन्य अधिकारियों को सजा सुनाई गई है उसमें कतर सरकार के छिपे मंसूबों को भी समझा जा सकता है। खासकर तब जबकि भारत से कतर के संबंध बहुत बुरे नहीं तो बहुत अच्छे भी नहीं कहे जा सकते हैं। 

समय-समय पर कतर विपऱीत छोर में ही खड़ा दिखा। दरअसल इस घटना के पीछे के संदर्भों को सबसे पहले जानना जरूरी है। जिस तरह इन नौसैन्य अधिकारियों को सजा सुनाई गई है वह हैरान करती है। ये सैन्य अधिकारी कतर की एक निजी कंपनी  अल दहरा में काम करने गए थे। ये कोई आम नौसैनिक अधिकारी नहीं है अपनी अपनी विशिष्ट सेवाओं के लिए जाने जाते हैं। ये सब भारत नौसेना के काबिल अधिकारी हैं। इनमें एक अधिकारी को भारत के राष्ट्रपति से स्वर्ण पदक मिल चुका है। वहीं एक दूसरे अधिकारी आईएनएस विराट में फाइटर कंट्रोलर रह चुके है। कतर की इस कंपनी ने इन अधिकारियों की सेवा इस आधार पर ली कि वह कतर के सशस्त्र बलो और सुरक्षा ऐजेंसियों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं देंगे। 

इनकी विशिष्ट क्षमताओं के आधार पर ही कतर से इन्हें बुलावा आया था। यह भी गौर करने लायक बात है कि इनमें एक अधिकारी को अल देहरा में प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी निभाने पर कतर अमीरी  नौसेना बलों के लिए क्षमता निर्माण में शानदार योगदान देने के लिए प्रवासी भारत सम्मान दिया गया। फिर ऐसा क्या हुआ कि एकाएक कतर में ऐसे काबिल अफसरों को गिरफ्तार किया गया। इन पर लगे आरोपों को तब सार्वजनिक नहीं किया गया था। कतर का रवैया शुरु से दुराग्रह भरा रहा। पहले तो इन नौसेन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया गया। न तो इनके परिजनों को गिरफ्तारी की सूचना भी नहीं दी गई। यहां तक कि इन पूर्व अधिकारियों को अलग अलग रखा गया। 

इन अधिकारियों में एक अधिकारी की बहन ने सोशल मीडिया में इस बारे में सूचना लिखा और भारत सरकार से अधिकारियों को छुडाने मे आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा तब यह बात प्रकाश में आई थी। इसी तरह एक और अधिकारी के परिजने ने भी इस व्यथा को लिखा।  भारत सरकार ने इसके बाद अपने स्तर पर वार्ता का दौर चलाया तो कतर से संकेत मिलने लगे कि देर सबेर इन अधिकारियों को छोड़ दिया जाएगा।  कतर पुलिस कपंमी के मालिक को भी पकड कर ले गई थी। लेकिन दो महीने बाद उसे छोड़ दिया गया। लेकिन इन पूर्व अधिकारियों को पुलिस ने हिरासत में ही रखा। इस बीच नौसेना के पूर्व  अधिकारियों को सप्ताह में एक दिन घर परिवार से बात करने की छूट मिली तो लगने लगा था कि अब मसला सुलझ जाएगा। हालांकि इन अफसरों की गिरफ्तारी ने भारत सरकार को हैरान किया। लेकिन जब एकाएक इन पूर्व सैनिकों को मौत की जसा सुनाई गई है तो फिर स्थिति जटिल हुई है। 
 
कतर की अदालत भारतीय नौसैनिक अधिकारियों पर इजरायल की जासूसी के आरोप पर इस फैसले पर पहुंची हो। लेकिन यह बात यकीन करने लायक नहीं है कि आठ पूर्व नौसेना अधिकारी इस साजिश में शामिल होंगे। वह तो कतर की सैन्य व्ववस्था क बेहतर बनाने के लिए गए थे। यही नहीं उनका हर तरह का रिकार्ड देखा गया है। कतर की कंपनी ने बड़ी छानबीन के बाद उन्हें अपनी सेवाओं में लिया होगा। ये अधिकारी एक तरह से कतर की सेवा कर रहे थे। कतर में उनकी गिरफ्तारी और फिर हाल में मौत की सजा सुनाए जाने के पीछे दो बड़े कारण ही दिखते हैं। भारत से पश्चिम देशों के बीच जो आर्थिक गलियारा बन रहा है उसे लेकर कुछ देशों को नाराजगी है। भारत के लिए यह गलियारा पश्चिम में व्यापार बढाने का एक बड़े मार्ग के रूप में दिख रहा है।  लेकिन कतर की अदालत की इस सजा को भारत से एक तरह का प्रतिशोध के तौर पर देखा जा रहा है। इजरायल और हमास के संघर्ष में भारत ने खुले तौर पर इजरालय का साथ दिया है और हमास को आतंकी संगटन करार दिया है।  भारत ने हमास के इजरायल पर हमले और लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार के लिए दोषी ठहराया है। हमास पर ऐसी कोई टिप्पणी कतर जैसा देश पसंद नहीं कर सकता। कतर उन खास देशों में है जहां से हमास को सहायता पहुंचती रही है। ऐसे में भारत की टिप्पणी कतर को नागवार गुजरी है। इसके लिए भारत को नियंत्रण में रखने के लिए कतर की यह कोशिश दिखती है।
  
वैसे देखें तो कतर के लिए भारत हमेशा मददगार साबित हुआ है। तकनीक खाद्यान  बुनियादी संरचना का प्रंबधन हर स्तर पर कतर को भारत से मदद मिली है। इसे इस तौर पर भी देखा जा सकता है कि भारत और कतर के बीच 90 बिलियन डालर का व्यापार होता है। कतर की कंपनियों में भारत के इंजीनियर काम कर रहे हैं। खाध्यान में भी भारत की मदद रही है। हाल में जब करत में खाद्यान की समस्या खड़ी हुई थी तो भारत ही उसके लिए आगे आया था। कतर में भारत के करीब आठ लाख से अधिक भारतीय रहते हैं। कतर की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने और कतर के  विकास और जीवन को बेहतर बनाने में भारतीयों का बड़ा योगदान है।

भारत कतर से प्राकृतिक गैस भी आयात करता है। बेशक इससे कतर से भारत में पैसा भी आया है।लेकिन इसके विपरीत कतर के स्तर पर समय समय पर ऐसी घटनाएं होती रहीहैं  जिसने भारत को असमंजस में डाला है। भारत जिन बातों को संवेदना के साथ शातिपूर्ण ढंग से निपटाना चाहता है कतर सरकार रह रह कर उसमें पानी फेर देती है। इसकी झलक यहां दिखी है जब उन भारतीयों को ही कैद किया गया जो उनकी सैना को मजबूत करने के काम में लगे थे। जबकि कतर के साथ आपसी स्तर पर भारत का कोई द्वेष नहीं है। कतर केवल दूसरे मुद्दों पर भटकता है, या भारत से दूरी बना लेता है।  कतर ने विश्व कप फुटबाल में भगोडे कट्टरपंथी जाकिर नाइक को उद्घाटन समारोह में बुलाया। उसे अतिथि सम्मान दिया। नुपुर शर्मा पर टिप्पणी करने वाला पहला देश कतर ही था। कतर के साथ भारत के रिश्ते बनते बिगड़ते भी रहे। 

 भारत के पीएम मोदी ने 2015 में कतर की यात्रा की थी। इसके एक साल बाद ही कतर के अमीर भारत आए थे। द्विपक्षीय वार्ता में ऐसे पहलु सामने आए तो लगा कि दोनों देशों के बीच में जो कुछ असहजता है वह धीरे धीरे दूर होने लगेगी। भारत के लिए तरह राजनीतिक ही नहीं आर्थिक स्तर पर भी बहुत महत्व रखता है। ऐसे में भारत को कूटनीति की परीक्षा से निकलना होगा। हालांकि भारत सरकार शुरू से राजनयिक और कानूनी मदद ले रही है। विदेश मंत्री ने इस आशय का बयान भी दिया है कि भारतीयों को छुडवाने के लिए सरकार  राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत करेगी। इसी स्तर पर यह मामला भी सुलझेगा। गौर करना होगा कि इस समय दुनिया के देशों में मुस्लिम बिरादरी इजरायल के खिलाफ खड़ी है। तब कतर भी पीछे नहीं दिखना चाहता है।

लेकिन अफसोस यही है कि उसने भारत को निशाना बनाया है। जहां तक भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारियों के जरिए जासूसी की बात है तो कतर न अभी कोई प्रमाण दे पाया है और माना जाना चाहिए कि ऐसे कोई प्रमाण उसके पास नहीं होंगे। ऐसे में बिना आधार के वह भी कोई ऐसा कदम नहीं उठा सकता। ये केवल पावर पोलिटिक्स है। भूमिकाओं को तय करने की कोशिश है। इधर भारत में कांग्रेस का कहना है कि सरकार इस मामले में तेजी से पहल करे और अधिकारियों को छुडाएं। विपक्ष के नाते यह सहज टिप्पणी हो सकती है। लेकिन ऐसे समय बेहद संवेदनशील परिस्थितियों के साथ होते हैं। दुनिया की कोई भी सरकार यह नहीं चाहेगी कि उसके लोग इस तरह कैद किए जाए। इसी तरह सोशियल मीडिया में भी ऐसे मसलों में बहुत सावधानी से लिखा कहा जाना चाहिए। आत्मप्रचार या ऐजेंडा चलाने के लिए ऐसे मसलो को हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। 

देश की यह प्राथमिकता है कि ये सभी भारतीय नौ सैना पूर्व अधिकारी कतर की जेल से छूट कर आए।अपने नागरिकों को बचाने के लिए सरकार को कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। जिस भी स्तर पर संभव हो भारत को यह पहल करनी ही होगी। बेहतर प्रयास और संतुलित भाषा के साथ भारत को इस अहम मसले को निपटाना होगा।  कतर जैसे छोटे देश को भारत की उस अहमियत को समझना चाहिए जहां भारत की हमेशा उसे मदद मिली है। और कतर के लिए भी एक सीमा से आगे जाना संभव नहीं होगा। कतर से पूर्व अधिकारियों की रिहाई भारतीय कूटनीति की परीक्षा है। बेशक कतर की हमास से संवेदना हो लेकिन भारत के साथ भी उसके लिए दोस्ती के अपने बड़े मायने हैं यह बात उसे समझनी चाहिए।