शिव पुराण महाशिवरात्रि की बहुत सी व्रत कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार, एक गांव में एक शिकारी था, जो पशुओं को शिकार करके अपना घर परिवार चलाता था. वह गांव के ही एक साहूकार का कर्जदार था. वह काफी प्रयासों के बाद भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पा रहा था. एक दिन क्रोधित होकर साहूकार ने उसे शिवमठ में बंदी बना लिया. उस दिन शिवरात्रि का ही दिन था.
जब शिकारी ने उस दिन शिवरात्रि की कथा को सुना. तो शाम के समय में उसे साहूकार के सामने पेश किया गया तो शिकारी ने वचन दिया कि अगले दिन वह सभी कर्ज को चुकाकर मुक्त हो जाएगा. तब उसे साहूकार ने छोड़ दिया. शिकारी वहां से जंगल में गया और शिकार की तलाश करने लगा. वह एक तालाब के किनारे पहुंचा. वहां पर वह एक बेल के पेड़ पर अपना ठिकाना बनाने लगा. उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, जो बेलपत्रों से ढंका हुआ था. उसे इस बात की जानकारी नहीं थी.
अनजाने में हो गई शिव की पूजा
बेल वृक्ष की टहनियों को तोड़कर वह नीचे फेंकता गया और बेलपत्र उस शिवलिंग पर गिरते गए. वह भूख प्यास से व्याकुल था. अनजाने में उससे शिव पूजा हो गई. दोपहर तक वह भूखा ही रहा. रात में एक गर्भवती हिरण तालाब में पानी पीने आई. तभी शिकारी ने उस हिरण को मारने के लिए धनुष-बाण तैयार कर लिया. उस हिरण ने कहा कि वह बच्चे को जन्म देने वाली है, तुम एक साथ दो हत्या न करो. बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम शिकार कर लेना. यह सुनकर शिकारी ने उसे जाने दिया.
कुछ देर बाद एक और हिरण आई तो शिकारी उसका शिकार करने को तैयार हो गया. तभी उस हिरण ने कहा कि वह अभी ऋतु से मुक्त हुई है, वह अपने पति की तलाश कर रही है, क्योंकि वह काम के वशीभूत है. वह जल्द ही पति से मिलने के बाद शिकार के लिए उपस्थित हो जाएगी. शिकारी ने उसे फिर से छोड़ दिया.