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कोचिंग में एडमिशन की उम्र 16 साल तय करना कितना सही

कोचिंग में भर्ती होने की उम्र तय करके भारत सरकार ने एक शानदार फैसला लिया है. यह समय की मांग थी और कोमल मन के स्वास्थ्य और सामाजिक विकास के लिए जरूरी भी. इस फैसले को लागू कराने पर कोई सवाल उठा सकता है लेकिन फैसले पर नहीं. यह देखना रोचक होगा कि केंद्र सरकार के इस बड़े-कड़े फैसले को लागू करने को राज्य सरकारें क्या कोशिश करती हैं? उन्हें इस मामले में कितनी कामयाबी मिलती है? क्या वाकई 16 से कम उम्र के बच्चों की एंट्री कोचिंग में अब नहीं होगी? अगर नहीं तो करोड़ों रुपये लगाकर तैयार नामी कोचिंग संस्थानों के इंफ्रा का क्या होगा?

निश्चित ही केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यह कदम काफी सोच-समझकर उठाया होगा. पर, यह विषय नाजुक है. इसमें कोचिंग वालों की रुचि भी है और पैरेंट्स की भी. नीट और जेईई की तैयारी के लिए अब छठी के बच्चों को भी दाखिला दिलाने को पैरेंट्स तैयार हैं और कोचिंग संस्थान उनके स्वागत के लिए बेताब हैं. हाल ही के सालों में एक ऐसा तंत्र विकसित कर दिया गया है कि पैरेंट्स भी आसानी से इस ठगी के शिकार हो रहे हैं और उन्हें लगता है कि वो अपने बेटे-बेटी का भविष्य संवार रहे हैं.

मनोविज्ञान कहता है कि बहुत छोटे बच्चों को कोचिंग भेजने का मतलब फैक्ट्री में भेजने जैसा है. उनका सामाजिक विकास तो होने ही नहीं पा रहा है. वे दादा-दादी, नाना-नानी, मौसी, बुआ के रिश्तों को समझने से पहले किताबों में उलझा दिए जा रहे हैं. छठवीं के किसी भी बच्चे का दिमाग इतना विकसित नहीं हो पाता कि वह अपने करियर का फैसला कर सके. पैरेंट्स भेड़चाल में फंसकर कोमल बचपन को कोचिंग रूपी फैक्ट्री में भेज रहे हैं. टैलेंट हंट के नाम पर छोटे-छोटे बच्चों का शिकार कोचिंग संस्थान कर रहे हैं और पैरेंट्स आसानी से उन्हें बाघ के मुंह का निवाला बना रहे हैं.