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हिंसा की लपट और मराठा आंदोलन

Written By- वेद विलास उनियाल 

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग फिर से धधक उठी है। राज्य के खासकर आठ जिले इससे प्रभावित हैं। आंदोलन की उग्रता को इस बात से समझा जा सकता है कि बीड में एक विधायक का घर फूंका गया है वहीं संभाजी नगर जिले में एक दूसरे विधायक के दफ्तर पर तोड़फोड़ हुई है। हालांकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि सरकार मराठाओं को आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। और इस दिशा में आगे बढ रही है लेकिन सभी मराठाओं को आरक्षण देने की मांग के साथ आंदोलन भड़क उठा है। मराठा आरक्षण की मांग को लेकर अनशन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने कहा है कि मराठाओं को ओबीसी के तहत आने वाली कुनबी में शामिल किया जाए। आरक्षण के इस आंदोलन में सियासत का खेल भी चल रहा है। 

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए चल रहा आंदोलन एकाएक हिंसक हो गया है। बीड जिले में मराठा आरक्षण की मांग करने वालों ने अजित पवार गुट के एक विधायक का घर फूंक दिया। वहीं संभाजीनगर जिले के दूसरे विधायक का दफ्तर तोड़ा गया। राज्य में अलग-अलग जगह पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई है। मराठा आरक्षण की आंच इतनी है कि शिंदे गुट के एक सांसद और बीजेपी के एक विधायक ने भी इस्तीफा दे दिया है। दरअसल मराठा आरक्षण की यह मांग पुरानी है लेकिन अब इसके लिए बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं।  यह मांग दरअसल उस कुनबी जाति से जुड़ी है जिसके तहत सभी मराठाओं को शामिल करने की बात कही जाती है। महाराष्ट्र में कृषि पर आधारित कुनबी जाति को ओबीसी के तहत आरक्षण मिला हुआ है। मराठाओं के लिए आरक्षण की मांग करने वालों का कहना है कि मराठा कुनबी के तहत ही आते हैं इसलिए प्रदेश के किसी एक हिस्से में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में जहां भी मराठा है उसे आरक्षण की सुविधा मिलनी चाहिए। लेकिन इसमें गहरा पेंच यही है कि मराठा को इसके तहत आरक्षण के दायरे में लाने से दूसरी ओबीसी जातियां अपने अधिकारों को छिनने की बात कह रही है। यानी एक निश्चित स्तर पर जो आरक्षण मिलना है उसने अगर मराठाओं को आरक्षण मिलता है तो दूसरे ओबीसी समुदाय के प्रतिशत से ही कटकर मिलेगा। इससे मराठाओं के इस आंदोलन के साथ-साथ दूसरे ओबीसी समुदाय में भी अपने हितों की चिंता होना स्वाभाविक है।
  
एक तरफ जहां महाराष्ट्र के आठ जिलों छत्रपति संभाजी नगर, जालना, हिंगोली, परभणी, नादेंड़ लातूर, धाराशिव और बीड़ में किसी स्तर तक तनाव पसरा है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे अनशन पर बैठे हैं। ऐसे में राज्य सरकार भी पूरे मामले में फूंक-फूंक कर चल रही है। सरकार कहीं से भी ऐसा संदेश नहीं देना चाहती कि वह इस आंदोलन के पक्ष में नहीं है। लेकिन उसे दूसरे पहलू को भी देखना है। सीएम एकनाश शिंदे ने कहा है कि सरकार मराठा समाज को आरक्षण देने के लिए कटिबद्ध है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर करने के प्रस्ताव पर राज्य सरकार को सलाह देने के लिए तीन विशेषज्ञों की समिति बनी है। इसकी पहली रिपोर्ट भी मराठाओं को और आरक्षण दिए जाने की तस्दीक करती है। इसे समिति को कुछ और समय दिया गया है। सीएम शिंदे एक तरफ आंदोलन कर रहे लोगों से अपील कर रहे हैं कि उन्हें कुछ और समय दिया जाए। सरकार सही दिशा में पहुंचेगी। यह भी सामने आया है कि नाशिक के शिदें गुट के सांसद हेमंत गोडसे और बीड में गेवराई के बीजेपी विधायक लक्ष्मण पवांर ने भी इस्तीफा सौंप रखा है।
 
शिंदे सरकार इस मामले में कई विकल्पों को देख रही है। राज्य सरकार के सामने अहम समस्या यही है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की जिस पचास प्रतिशत की सीमा को तय किया है उसमें इस सीमा को तोड़ा नहीं जा सकता। उसे आरक्षण के दायरे में भी इसे देखना होगा। 

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने यह भी कहा है कि पुराने 11530 अभिलेखों में कुनबी जाति का उल्लेख हैं। इनके लिए नए प्रमाणपत्र जारी होंगे। साथ ही राज्य सरकार के जरिए अध्यादेश लाए जाने की भी बात कही जा रही है। मुख्यमंत्री एक तरफ अपनी पहल कर रहे हैं वहीं उन्होंने आंदोलन करने वालों से कहा है कि वे जल्दबाजी में कोई कदम न उठाए।
 
दरअसल, इस मामले को समझने के लिए हमें आरक्षण की मांग के पूरे घटनाक्रम को समझना होगा। शिवाजी के वंशज छत्रपति शाहुजी ने दशकों पहले इस बात को उठाया था कि मराठाओं को आरक्षण दिया जाना चाहिए। मराठा आरक्षण के लिए पहला बड़ा आंदोलन मराठा महासंघ और मराठा सेवा संघ ने चलाया। उन्होंने इस आवाज को उठाया कि मराठा उच्च जाति नहीं है बल्कि यह ओबीसी के तहत आती है। इसे आरक्षण में ओबीसी की दूसरी जातियों की तरह फायदा मिलने चाहिए।
 
आजादी के बाद 1982 में पहली बार मराठा आंदोलन की मांग जोर शोर से उठी। अन्ना साहेब पाटिल ने इसके लिए आंदोलन किया था। जब उनकी बात नजरअंदाज की गई तो उन्होंने आत्मदाह कर दिया। फिर यह मामला कभी तूल पकड़ कभी दबता रहा। 2008 में शरद पवार और विलासराव देशमुख ने भी मराठा आरक्षण का समर्थन करते हुए कहा था कि मराठाओं को आरक्षण के दायरे में लाया जाना चाहिए। 

2014 में पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार के समय नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में मराठाओं को आरक्षण दिलाने के लिए अध्यादेश लाए। तब सरकार ने सरकारी नौकर और शैक्षिक संस्थाओं में मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया। इस फैसले को अदालत में चुनौती दी गई। 2017 में मराराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के आर्थिक सामाजिक स्थिति के अध्ययन के लिए स्टेट बैकवर्ड क्लास समिति का गठन किया। इसक बाद फड़वीस सरकार ने भी इस दिशा में पहल की। उन्होंने सरकारी नौकरियों में मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया। 

2018 में मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव पारित हुआ। इसे भी हाइकोर्ट में चुनौती दी गई। हाइकोर्ट ने इससे संबंधित सभी याचिकाओं में रोक लगा दी। महाराष्ट की सियासत में और आम सामाजिक जीवन में यह सवाल उठता रहा कि आखिर मराठा कौन है। संभाजी ब्रिग्रेड के प्रो प्रवीण गायकवाड़ जैसे लोग यह भी कहते रहे जो महाराष्ट्र में है वो मराठा, तो कुछ ने कहा कि हर मराठा मराठी है लेकिन हर मराठी मराठा हो यह जरूरी नहीं। इस सबके साथ जिस बात पर जोर दिया गया वह यही थी कि मराठी कुनबी एक है। उन्हें अलग अलग नहीं माना जा सकता। जिस तरह कुनबी को आरक्षण दिया जाता रहा है उसी आधार पर यह हक राज्य के मराठा को मिलना चाहिए।
 
महाराष्ट्र में 33 फीसदी आबादी मराठा मानी जाती है। राज्य में मराठा नेताओं का अपना वर्चस्व रहा। राज्य की सियासत में भी उनका प्रभाव रहा। यह सियासत में मराठा प्रभाव है कि 20 मुख्यमंत्रियों में 12 मराठा रहे हैं। मराठा आरक्षण की मांग अपनी जगह है लेकिन इस पर खासी सियासत भी है। मराठा आरक्षण की मांग का प्रभाव महाराष्ट के धुर उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों पर भी पड़ता है। विदर्भ क्षेत्र से भी इससे अलग आवाज उठती रही है। उसे भी समझा जाना चाहिए। साथ ही ओबीसी के तहत आने वाली दूसरी जातियों के भी अपने तकाजे हैं। 

एनसीपी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले जयंत पाटिला के नेतृत्व में एर प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की। साथ ही सरकार से आरक्षण आंदोलन में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। उधर शिवसेना उद्धव ने कहा है कि सरकार इस मामले में बेहतर विकल्प के साथ कदम उठाए। उधर विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष में भी आंदोलन केसमर्थन में शिवसेना गुट के हेमंत पाटिल ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
 
कोई भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकता है। और सियासत भी अपनी तरह से चलती है। लेकिन ध्यान यही रखा जाना चाहिए कि उत्तेजना और आक्रोश में राज्य के संसाधनों की बर्बादी न हो। आगजनी तोड़फोड पथराव किसी चीज का समाधान नहीं। किसी मांग को उठाने के लिए जरूरी नहीं कि समाज को उत्तेजित होना पड़े। महाराष्ट्र सरकार से भी अपेक्षा की जाती है कि वह इस पूरे मामले को बेहद संवेदनशीलता के साथ देखें। महाराष्ट्र देश की आर्थिक नगरी है। राज्य की खुशहाली में देश की खुशहाली है।