पुंछ पहाड़ों के बीच बसा एक ऐसा शहर है, जहां के लोग मेरे लिए अनजान होते हुए अपने से हैं. मुझे आज भी अपना वो पहला ट्रिप याद है जब पुंछ के एक-एक इलाके में बिंदास बिना किसी डर के घूम रही थी, वहां मुझे कई ऐसे लोग मिले, मैं न तो उनका नाम जानती थी और न ही उनका धर्म, बस इतना कहा दिल्ली से आई हूं पत्रकार हूं, उन लोगों ने मुझे अपने घर में बैठाकर खाना खिलाया. मेरी मेहमानबाजी करने वाले हिंदू, मुसलमान और सेना के जवान सब थे. उस शहर के लोगों का अपनापन ही है कि मैं तीन बार वहां जा चुकी हूं. आज भी मेरे रिश्तेदारों से ज्यादा वहां के लोगों के फोन आते हैं, वहां रहकर कभी महसूस ही नहीं हुआ कि कभी वहां आतंकवाद का राज था, लेकिन एक बार फिर वहां आतंक दस्तक दे रहा है, लगातार उस इलाके से आतंकी गतिविधियों की खबरें आ रही हैं, कुछ लोग इस इलाके में फिर से अशांति फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.