Breaking News

अमृतसर: अजनाला में 3 हैंड ग्रेनेड और RDX बरामद     |   अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के कई सैनिकों को बंदी बनाने का दावा किया     |   अहमदाबाद में हो सकते हैं 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स, 26 नवंबर को होगा फैसला     |   तमिलनाडु: AIADMK कल विधानसभा में कोल्ड्रिफ और किडनी रैकेट का मुद्दा उठाएगी     |   पाकिस्तान, अफगानिस्तान 48 घंटे के अस्थायी युद्धविराम पर सहमत     |  

मसूरी गोलीकांड की 31वीं बरसी, शांत वादियों में छलका लहू, इतिहास के पन्नों में दर्ज एक काली तारीख

Mussoorie: आज से ठीक 31 साल पहले, 2 सितंबर 1994 को मसूरी की वादियों में एक दर्दनाक और ऐतिहासिक घटना घटित हुई थी, जब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर शांतिपूर्ण रैली निकाल रहे आंदोलनकारियों पर पुलिस ने अचानक गोलियां चला दी थीं।

इस गोलीकांड में 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे, जिनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं। एक पुलिसकर्मी की भी जान गई थी, यह घटना उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक निर्णायक मोड़ बनी, लेकिन तीन दशक बाद भी आंदोलनकारी मानते हैं कि शहीदों के सपनों का उत्तराखंड आज भी अधूरा है।

खटीमा से मसूरी तक बहा संघर्ष का लहू-
1 सितंबर 1994 को खटीमा में हुए गोलीकांड में 7 आंदोलनकारी शहीद हुए थे, अगले ही दिन 2 सितंबर को मसूरी में जब आंदोलनकारियों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, तो झूलाघर कार्यालय के पास अचानक फायरिंग शुरू हो गई। जिसमें आंदोलनकारी मदन मोहन ममगाईं,हंसा धनाई, बेलमती चौहान, बलवीर नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी शहीद हुए.

उत्तराखंड का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ, लेकिन आंदोलनकारियों का कहना है कि जिन उद्देश्यों से राज्य की मांग की गई थी। जैसे पलायन रोकना, रोजगार देना, शिक्षा-स्वास्थ्य और गांवों का विकास वे आज भी अधूरे हैं। पहाड़ से पलायन जारी, गांव खाली, बेरोजगारी चरम पर, युवा मैदानों की ओर मजबूर, स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल, स्कूल बंद हो रहे हैं, खनन व भूमि माफिया सक्रिय है।

वर्तमान में राज्य आंदोलनकारियों की स्थिति आज भी चिंताजनक है। कई आंदोलनकारियों को आज भी कई केस और कोर्ट मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है। क्षैतिज आरक्षण का मामला एक साल पहले पास हुआ, लेकिन कोर्ट में चुनौती के चलते अटका हुआ है।

मसूरी व्यापार मंडल के महामंत्री जगजीत कुकरेजा का कहना है कि होम स्टे योजना का लाभ भी बाहरी लोग उठा रहे हैं, स्थानीयों को लाइसेंस नहीं मिलते।” राज्य आंदोलनकारी मनमोहन सिंह मल्ल, श्रीपति कंडारी, और भगवती प्रसाद सकलानी बताते हैं कि वे मसूरी गोलीकांड के समय वहां मौजूद थे। हर घर से लोग उस दिन बाहर निकले थे। मसूरी का हर नागरिक आंदोलनकारी था, लेकिन आज शहीदों के सपनों की दिशा में काम नहीं हुआ