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हमारा प्यारा उत्‍तराखंडी गीत

हमारा प्यारा उत्तराखंड! उत्तराखंड की खूबसूरती के बारे में आखिर कौन नहीं जानता। यहां कुमाऊं और गढ़वाल की भव्‍य संस्‍कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है। उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है, देव भूमि यानि कि देवों की भूमि। कहते है यहां भगवान का वास है। यहां रहने वाला हर व्यक्ति यहां की संस्‍कृति से मिल जुल कर रहता है। यहां के गीत मानों कोयल की वाणी, उत्‍तराखंडी गीतों के लिए हर पहाड़ी के दिल में एक अलग ही लगाव दिखाई देता है। इतना ही नहीं इन पहाड़ी लोक गीतों के सुर इतने मीठे और आकर्षक होते हैं कि इसे सुनने वाला हर कोई झूमने लगता है।

आज हम एक ऐसे ही लोक गीत के बारे में आपको बताने वाले है जो हर पहाड़ी के दिल में बसता है, ये गीत हर पहाड़ी को उसके पहाड़ की याद दिलाता है। इतना ही नहीं ये गीत उन्हें वहां की संस्‍कृति से भी जोड़े रखता है। ये लोक गीत और कोई नहीं बल्कि बेडु पाको बारामासा गीत है। इस गीत के बिना उत्तराखंड के गीतों की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इस गीत का अपना एक अलग ही इतिहास है जो इसे और भी  ज्यादा खास बनाता है। 

इस गीत की शुरुवात होती है साल 1952 में जब राजकीय इंटर कालेज नैनीताल में इस गीत को पहली बार गाया गया। पहली बारी में ही हर कोई इस गीत का दीवाना हो गया। इस गीत को सबने काफी पसंद किया इसके बाद इसे 1995 में दिल्ली के पी एम हाउस में यू एस एस आर यानि की सोवियत संघ के नीताओं के स्वागत के लिए बजाय गया। इस गीत को उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी खूब पसंद किया। गीत की लोकप्रियता तो तब बड़ी जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बेडु पाको बारामासा गीत को बेस्ट फोक सॉन्ग का दर्ज दिया और साथ ही इस गाने के कम्पोज़र मोहन उप्रेती को  बेडु पाको बॉय का टाइटल मिला। 

बेडु पाको एक कुमाउनी सॉन्ग है, जो उत्तराखंड की वादियों में बसता है। इस गीत को आगे चलकर बृजेन्द्र लाल शाह ने पूरा किया। ये गीत आज कल केवल उत्तराखंड का ही नहीं बल्कि वर्ल्ड वाइड धुन बन चुका है, फोरन कंट्री के काफी सारे चर्च  में इस गीत को प्ले किया जाता है। 

गाने की पहली लाइन की बात करे तो बेडु एक पहाड़ी फल होता है। ये गीत कुमाऊं रेजिमेंट का ऑफिशियल सॉन्ग भी है। इतना ही नहीं इसकी धुन रिपब्लिक डे पर होने वाली हर मार्चिंग परेड में भी जरूर शामिल की जाती है।