New Delhi: सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) कानून 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है। हाल ही में कानून बना वक्फ संशोधन अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में बड़े बदलाव लाता है। इसमें वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व और राज्य नियंत्रण का विस्तार करना शामिल है।
कम से कम 15 याचिकाओं में ये तर्क दिया गया है कि वक्फ संशोधन कानून धार्मिक स्वतंत्रता और समानता जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। विपक्षी नेताओं ने इस वक्फ संशोधन अधिनियम की कड़ी आलोचना की है और इसे भेदभावपूर्ण और मुस्लिम हितों के लिए खतरा बताया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई धार्मिक और नागरिक अधिकार समूहों ने भी वक्फ संशोधन कानून पर कड़ी आपत्ति जताई है। वक्फ (संशोधन) कानून 2025 ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। आलोचक इसे भेदभावपूर्ण बताते हैं, जबकि सरकार इसे पारदर्शिता बढ़ाने, विरासत स्थलों की सुरक्षा करने और विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं सहित हाशिए पर पड़े पसमांदा मुस्लिम समुदाय को सशक्त बनाने के लिए हितकारी बता रही है
केंद्र ने कानूनी चुनौतियों की आशंका को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की है ताकि कोर्ट कोई भी आदेश देने से पहले उसके पक्ष को भी सुने। कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने नए कानून का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। जिसमें तर्क दिया गया है कि वक्फ संशोधन कानून पारदर्शिता को बढ़ावा देता है और इससे गरीब मुस्लिमों का भला होगा। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर सभी की नज़र रहेंगी क्योंकि इसमें संवैधानिक अधिकारों पर सुनवाई होनी है।
ये मामला अल्पसंख्यक अधिकारों से काफी गहराई से जुड़ा हुआ है। राज्य प्राधिकरण और धार्मिक स्वायत्तता के बीच वक्फ संपत्ति का प्रबंधन किस तरह सरकार करेगी और इसका क्या असर मुसलमानों पर पड़ेगा, इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट को करनी है।