Mumbai: बाजार नियामक सेबी का निदेशक मंडल शुक्रवार को अपनी बैठक में कई अहम सुधार प्रस्तावों पर विचार कर सकता है जिनमें बड़ी कंपनियों के लिए आईपीओ की शर्तों में ढील और न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी हासिल करने की समयसीमा बढ़ाने जैसे प्रस्ताव शामिल हैं। सूत्रों ने गुरुवार को ये जानकारी दी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय के कार्यकाल की ये तीसरी बोर्ड बैठक होगी। पांडेय ने इस साल एक मार्च को सेबी प्रमुख का पदभार संभाला था। सूत्रों ने कहा कि सेबी का निदेशक मंडल बड़ी कंपनियों को भारतीय बाजार में सूचीबद्ध होने के लिए प्रोत्साहित करने वाले प्रस्ताव पर अपनी मुहर भी लगा सकता है।
प्रस्ताव है कि 50,000 करोड़ रुपये से लेकर एक लाख करोड़ रुपये के पूंजीकरण वाली कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक निर्गम (एमपीओ) 1,000 करोड़ रुपये और न्यूनतम आठ प्रतिशत निर्गम-पश्चात पूंजी का प्रावधान रखा जाए। इन्हें न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) की 25 प्रतिशत सीमा को मौजूदा तीन साल के बजाय पांच साल में हासिल करने की छूट दी जा सकती है।
वहीं, एक लाख करोड़ रुपये से पांच लाख करोड़ रुपये तक के पूंजीकरण वाली कंपनियों के लिए एमपीओ का आकार 6,250 करोड़ रुपये और न्यूनतम 2.75 प्रतिशत निर्गम-पश्चात पूंजी होगी। इनके लिए एमपीएस हासिल करने की समयसीमा 10 साल तक बढ़ाई जा सकती है।
पांच लाख करोड़ रुपये से ऊपर के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियों के लिए एमपीओ 15,000 करोड़ रुपये और कम से कम एक प्रतिशत निर्गम-पश्चात पूंजी रहेगी। ऐसा होने पर कंपनियां अपेक्षाकृत छोटे आईपीओ से शुरुआत कर सकेंगी और लंबी अवधि में क्रमिक रूप से सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़ा पाएंगी। इससे कंपनियों पर तत्काल बड़े पैमाने पर प्रवर्तक हिस्सेदारी घटाने का दबाव कम होगा।
इस बैठक में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के अनुपालन को सरल बनाने, कुछ एआईएफ (वैकल्पिक निवेश कोष) में मान्यताप्राप्त निवेशकों के लिए नियम शिथिल करने, रेटिंग एजेंसियों की गतिविधियों का दायरा बढ़ाने और निवेश ट्रस्ट- रीट्स एवं इनविट्स को इक्विटी का दर्जा देने जैसे प्रस्तावों पर भी चर्चा हो सकती है।
सूत्रों ने बताया कि बैठक में कम जोखिम वाले विदेशी निवेशकों के लिए एकल खिड़की पहुंच व्यवस्था ‘स्वागत-एफआई’ का प्रस्ताव भी आ सकता है। ये ढांचा लागू होने पर सरकारी कोष, केंद्रीय बैंक, सरकारी संपत्ति कोष, बहुपक्षीय संस्थाएं, बीमा कंपनियां और पेंशन कोष जैसे निवेशकों को निवेश की आसान सुविधा मिलेगी और बार-बार दस्तावेज जमा करने की जरूरत कम होगी।