Hockey: भारत की हॉकी यात्रा 1925 में शुरू हुई थी और अब, सौ साल बाद, यह खेल एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने वाले जश्न में बदल चुका है. भारत की मिट्टी ने खेलों को हमेशा एक अलग गरिमा दी है, जिस खेल ने देश को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी, वह है हॉकी। आज भारतीय हॉकी अपने 100 गौरवशाली वर्ष मना रही है, लेकिन इसकी जड़ें सैकड़ों साल पुरानी हैं। 16वीं सदी में स्कॉटलैंड में खेले जाने वाले हॉकी जैसे खेल से इसकी नींव रखी गई थी। ब्रिटिश साम्राज्य ने 18वीं सदी के अंत में आधुनिक हॉकी का रूप दिया और जब वह भारत पहुंचे, तो अपने साथ यह खेल भी लेकर आए।
बड़े मैदानों और खेल की सरलता ने इसे देशभर में लोकप्रिय बना दिया, 1855 में कोलकाता (तब के कलकत्ता) में भारत का पहला हॉकी क्लब बना और वहीं से शुरू हुई वह यात्रा, जिसने एक दिन भारत को दुनिया का चैंपियन बना दिया। भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने पर भव्य शताब्दी समारोह की शुरुआत नई दिल्ली में हो रही है।
मेजर ध्यानचंद-
1926 में भारतीय हॉकी टीम पहली बार न्यूजीलैंड दौरे पर गई, 21 मैचों में से 18 जीत और इसी दौरे में उभरा एक नाम जिसने खेल को धर्म बना दिया- मेजर ध्यानचंद। उनकी स्टिक पर गेंद जैसे जादू से चलती थी। 1928 में जब हॉकी को ओलंपिक में स्थायी रूप से जगह मिली, भारत ने अपने पहले ही प्रयास में एम्स्टर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लिया। 29 गोल किए, एक भी नहीं खाया। इनमें से 14 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए और भारत बन गया दुनिया की नई हॉकी ताकत।
1947 में भारत आजाद हुआ और 1948 में लंदन ओलंपिक में स्वतंत्र भारत ने पहली बार भाग लिया। नए नायक के रूप में उभरे बलबीर सिंह सीनियर, जिन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1948, 1952, 1956) में भारत को स्वर्ण दिलाया। ये जीतें केवल पदक नहीं थीं, ये थीं गुलामी के बाद आत्मसम्मान की वापसी, पर 1960 रोम ओलंपिक में पाकिस्तान ने भारत को हराया और स्वर्ण पर रोक लगाई।
फिर 1964 टोक्यो में भारत ने वापसी करते हुए एक और स्वर्ण जीता, लेकिन यह भी साफ दिखने लगा कि अब दुनिया बदल रही है और भारत को नई चुनौतियों से जूझना होगा। 2008 के झटके ने हॉकी भारत को झकझोर दिया, जिसके बाद खिलाड़ियों को प्रोफेशनल माहौल मिलने लगा। 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने रजत और एशियाई खेलों में कांस्य जीता। 2012 लंदन ओलंपिक में टीम सबसे नीचे रही, लेकिन वहां तक पहुंचना ही एक उपलब्धि थी। फिर आया रियो 2016, और पहली बार 36 साल बाद भारतीय महिला टीम ने ओलंपिक में जगह बनाई।
टोक्यो 2020:
2021 में टोक्यो ओलंपिक (कोविड के कारण 2020 नहीं, 2021 में हुआ) में भारतीय पुरुष टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता। यह वह क्षण था जब पूरे देश ने आंसुओं के साथ कहा- भारत में हॉकी लौट आई है। महिलाओं ने भी चौथा स्थान पाकर इतिहास रचा और क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को हराया।
2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुषों ने रजत और महिलाओं ने कांस्य जीता। फिर 2023 एशियाई खेलों (हांगझोऊ) में पुरुष टीम ने स्वर्ण, और महिला टीम ने कांस्य हासिल किया। इस जीत ने भारत को पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कराया। 2024 में पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत ने लगातार दूसरी बार ओलंपिक पदक जीता। टीम इंडिया ने लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता। कप्तान हरमनप्रीत सिंह 10 गोल के साथ टूर्नामेंट के शीर्ष स्कोरर रहे। यह वह पल था जिसने फिर कहा- हम फिर से वहीं हैं, जहां कभी ध्यानचंद खड़े थे।
1855 से 2025, यह केवल खेल का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्र के आत्मसम्मान की गाथा है। ब्रिटिशों से सीखी हुई यह हॉकी अब भारतीय संस्कृति का प्रतीक बन चुकी है। ध्यानचंद से लेकर हरमनप्रीत तक, बलबीर सिंह से लेकर रानी रामपाल तक, यह कहानी हर पीढ़ी के संघर्ष, समर्पण और सपनों की मिसाल है।
हॉकी उत्सव-
भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने पर शताब्दी समारोह की शुरुआत नई दिल्ली में हो रही है, यह समारोह सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे भारत में 550 से अधिक जिलों में एक साथ कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान लगभग 1,400 हॉकी मैच खेले जाएंगे। प्रत्येक जिले में एक पुरुष और एक महिला मैच के रूप में, जो समानता और समावेश का प्रतीक होंगे। इस पहल में 36,000 से अधिक खिलाड़ियों की भागीदारी होगी, जिससे यह आयोजन देश के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में राष्ट्रीय खेल के उत्सव का रूप लेगा।