Chhattisgarh: तेल्लम मुक्के, क़रीब दो साल तक जंगल में बंदूक उठाए अपनों के ख़िलाफ़ लड़ती रहीं। उन्होंने एक बार फिर बंदूक उठाई है, लेकिन इस बार अपनों को बचाने के लिए, और ये सब संभव हुआ है, छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सल सरेंडर नीति के तहत।
कुछ ऐसी ही कहानी सोड़ी मुई की भी है, जिन्होंने कई सालों तक माओवादियों के लिए काम किया, लेकिन जंगल में भटकने से बेहतर, उन्होंने मुख्यधारा में लौटना उचित समझा, और हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा से जुड़ गए।
तेल्लम मुक्के और सोड़ी मुई के अलावा ऐसे तमाम पूर्व नक्सली हैं, जिन्होंने हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति काफी कारगर साबित हो रही है। प्रदेश सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से नक्सलवादी आत्मसमर्पण पीड़ित राहत एवं पुनर्वास नीति 2025 लागू की है। इसके तहत सरेंडर करने वाले सक्रिय इनामी नक्सलियों और उनके परिवारजनों को सरकार शिक्षा, नौकरी और वित्तीय सहायता जैसी कई महत्वपूर्ण सुविधाएं मुहैया करा रही है।
योजना के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की ओर 36 माह तक 10 हजार रुपए स्टाइपेंड की व्यवस्था है। साथ ही इन्हें कौशल विकास की ट्रेनिंग देकर रोज़गार के रास्ते भी खोल रही है। सरकार की इन योजनाओं से प्रभावित होकर पिछले डेढ़ साल में 1400 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हुए।
बस्तर के सभी सात ज़िलों में पुनर्वास केंद्र स्थापित किए गए हैं। जहां सरेंडर करने वाले नक्सलियों को करीब तीन महीने तक वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स कराया जाता है। साथ पुलिस और दूसरे विभागों में भी इनके लिए नौकरी की व्यवस्था की जाती है। साथ ही इन पुनर्वास केंद्रों में खेल, मनोरंजन, और पढ़ाई के लिए लाइब्रेरी के साथ तमाम दूसरी सुविधाएं होती हैं।
नक्सल मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने की दिशा में विष्णु देव साय सरकार की सरेंडर नीति काफी प्रभावी साबित हो रही है। इससे नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति आने के साथ साथ हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में नक्सल काडर शामिल हो रहे हैं और बस्तर संभाग में विकास का हिस्सा बन रहे हैं।