1990 के दशक तक भारतीय चुनावों में कागजी मतपत्रों का इस्तेमाल होता था। पांच लाख लोगों द्वारा मैनुअल वोटिंग पद्धति का इस्तेमाल करने के कारण, चुनाव संबंधी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना भी संभव हो गया। इसने उच्च न्यायालयों और भारतीय चुनाव अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग करने के लिए मजबूर किया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन क्या है?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) एक पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका इस्तेमाल चुनाव कराने के लिए किया जाता है। इनका इस्तेमाल संसद के साथ-साथ नगरपालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों के चुनावों में भी किया जाता है।
ईवीएम में एक माइक्रोकंट्रोलर-आधारित डिज़ाइन है जो मतदान का सुरक्षित और सुदृढ़ होना सुनिश्चित करता है। ईवीएम में एक व्यक्ति केवल 1 वोट डाल सकता है, जिससे इसमें अमान्य वोटों की गुंजाईश नहीं होती है और वोटों की गिनती सटीक और कुशल तरीके से होती है। ईवीएम वोटिंग डेटा को सालों तक अपने पास रखती है, जिसे जरूरत पड़ने पर निकाला जा सकता है।
भारत के चुनाव आयोग ने 1989 में भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) के सहयोग से ईवीएम को बनाया। 1999 में पहली बार गोवा राज्य विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन कैसे काम करती है?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन क्या है, यह जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि यह कैसे काम करती है। ईवीएम में एक बैलेटिंग यूनिट और एक कंट्रोल यूनिट होती है। पांच मीटर की केबल इन दोनों हिस्सों को जोड़ती है। एक मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट को संभालता है और वोट डालने के लिए बैलेटिंग यूनिट को एक अलग डिब्बे में रखता है। ईवीएम 6V एल्कलाइन बैटरी पर चलती हैं, और यह सुविधा उन्हें ऐसे समय में इस्तेमाल करने योग्य बनाती है जब बिजली नहीं होती है।
एक बैलेटिंग यूनिट मतदाताओं को हॉरिजेंटली लगे हुए नीले बटन की सुविधा देती है जो उम्मीदवार के नाम और पार्टी के चिन्ह को सूचीबद्ध करता है। कंट्रोल यूनिट में "बैलट" लिखा हुआ बटन होता है, जिसका इस्तेमाल मतदान अधिकारी अगले मतदाता के लिए तैयार होने के लिए करते हैं।
बूथ पर जब कोई मतदाता मतदान कक्ष में प्रवेश करता है, तो एक अधिकारी मतपत्र इकाई को एक्टिवेट करता है। मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार के चिन्ह और नाम के सामने मौजूद नीला बटन दबाना होता है। बटन दबाने के बाद, चुने गए उम्मीदवार के बगल में एक लाल बत्ती चमकेगी, और लंबी बीप की आवाज आएगी। कोई भी मतदाता बैलट स्लिप का प्रिंट देख सकता है जो उम्मीदवार और क्रम संख्या के लिए वोट डाले जाने की पुष्टि करेगा।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के फ़ायदे
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ईवीएम में वोटिंग में बहुत कम समय लगता है।
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वोटों की गिनती और परिणाम घोषित करने में भी पिछली प्रणालियों की तुलना में कम समय लगता है।
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बिना नुकसान पहुंचाए ईवीएम के प्रोग्राम में बदलाव नहीं किया जा सकता है, जिस कारण वोटों में हेराफेरी नहीं की जा सकती। यह वोट की धोखाधड़ी को रोकता है।
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ईवीएम में सीलबंद सुरक्षा चिप होती है। ईवीएम के सिस्टम से कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता और सुरक्षा में सेंध नहीं लगा सकता।
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एक निर्वाचन क्षेत्र में, एक ईवीएम मतदान प्रणाली में 64 उम्मीदवार फीड हो सकते हैं।
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एक मिनट में एक ईवीएम में सिर्फ 5 लोग वोट डाल सकते हैं.
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एक व्यक्ति केवल 1 वोट डाल सकता है; दूसरे प्रयास से कोई बदलाव नहीं होगा।
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ईवीएम बैटरी से चलती हैं जो बिना रुके मतदान प्रक्रिया की पुष्टि करती हैं।
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ईवीएम में वोटिंग डेटा 10 साल तक रहता है।.
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ईवीएम में एक नोटा बटन होता है जिसे कोई भी "उपरोक्त में से कोई नहीं" संबंधी वोट करने के लिए दबा सकता है या यह व्यक्त कर सकता है कि वह इस पद के लिए किसी भी उम्मीदवार को उपयुक्त नहीं समझते हैं।
हालाँकि, इतने सारे फायदों के साथ, ईवीएम के कुछ नुकसान भी हैं।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के नुकसान
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ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम केवल राज्य की भाषा में होंगे। अग़र कोई मतदाता उस भाषा से परिचित नहीं है, तो उसे अपनी पसंद के उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह याद रखना होगा।
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ईवीएम केवल 3840 वोट तक रिकॉर्ड कर सकती है। हालांकि, यह एक लिमिट है जो आम तौर पर मतदान प्रक्रिया में बाधा नहीं बनती है, क्योंकि प्रत्येक मतदान केंद्र के लिए उतने मतदाता नहीं होते हैं।
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ईवीएम में केवल 64 उम्मीदवार ही फीड हो सकते हैं। ऐसा वह 4 बैलेटिंग यूनिट को जोड़कर करता है। अग़र उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती है, तो लोगों को मैन्युअल मतदान पद्धति का पालन करना पड़ता है।