कैथोलिक चर्च के प्रमुख और रोम के बिशप पोप का चुनाव सदियों पुरानी प्रक्रिया से होता है। इसे पैपल कॉन्क्लेव कहते हैं, पोप के इस्तीफा देने या गुजर जाने के बाद दुनिया भर के रोमन कैथोलिक कार्डिनल वेटिकन के सिस्टीन चैपल में बंद हो जाते हैं। वहां गोपनीय और बेहद प्रतीकात्मक प्रक्रिया से उत्तराधिकारी का चुनाव होता है।
इस प्रक्रिया में सिर्फ 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल ही वोट डाल सकते हैं। सायरो-मालाबार कैथोलिक इपारकी आर्क बिशप मार कुरियाकोस भारनिकुलंगर ने कहा कि "पोप का चुनाव एक कॉन्क्लेव में होता है, जिसमें सिर्फ कार्डिनल ही भाग ले सकते हैं। सभी कार्डिनल की उम्र 80 साल से कम होनी चाहिए। जब पोप गुजर जाते हैं तो सभी कार्डिनल को सूचना दी जाती है। वो रोम आते हैं। सभी उपयुक्त उम्मीदवारों की उम्र 80 साल से कम होती है। वहां सिस्टीन चैपल नाम की जगह है। वहां अलग तरह का कार्यक्रम, प्रार्थना और चुनाव होता है। आपको सफेद और काले धुएं की कहानी मालूम होगी। उसके आधार पर सेंट पीटर का उत्तराधिकारी चुना जाएगा।"
पोप के इस्तीफा देने या मृत्यु के अमूमन 15 से 20 दिन के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू होती है। इससे दुनिया भर के कार्डिनल्स को वेटिकन पहुंचने का पूरा समय मिल जाता है। सायरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च के प्रमुख आर्क बिशप कार्डिनल क्लीमिस बैसेलोइस भारत के चार कार्डिनल्स में एक हैं, जो नए पोप के चुनाव के लिए वोट दे सकते हैं।
सायरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च के कार्डिनल क्लीमिस बैसेलोइस ने बताया कि "मुझे अभी पूरी जानकारी नहीं है। मैं वेटिकन से सूचना आने का इंतजार कर रहा हूं। मैं कल सुबह वेटिकन जाउंगा। इसके बाद उनके अंतिम संस्कार और दूसरी प्रकियाओ में हिस्सा लूंगा।"
नया पोप चुनने की प्रतीकात्मक प्रक्रिया में धुएं की काफी अहमियत होती है। हर दौर के मतदान के बाद बैलेट सिस्टीन चैपल में खास तरह से डिजाइन किए गए स्टोव में जला दिए जाते हैं। अगर किसी को दो-तिहाई बहुमत नहीं मिलता तो बैलट को खास रसायन मिला कर जला दिया जाता है, जिससे काला धुआं निकलता है।
जब किसी कार्डिनल को तय वोट मिल जाते हैं, तो भी बैलट को जलाया जाता है। इस बार बैलट जलाने के लिए इस्तेमाल रसायन से सफेद धुआं निकलता है।