न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (JTRI), उत्तर प्रदेश ने यूनिसेफ के सहयोग से और माननीय उच्च न्यायालय किशोर न्याय समिति तथा महिला एवं बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के तत्वावधान में “बालिकाओं की सुरक्षा उत्तर प्रदेश में उनके लिए सुरक्षित एवं सक्षम वातावरण” विषय पर एक राज्य स्तरीय हितधारक परामर्श का आयोजन किया।
इस परामर्श का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं की सुरक्षा को केंद्र में रखते हुए किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और POCSO अधिनियम, 2012 के प्रभावी क्रियान्वयन पर विमर्श करना रहा। चर्चा में यह भी तय किया गया कि आगे राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे परामर्श आयोजित होंगे, जिनमें बाल विवाह, यौन शोषण, तस्करी और हिंसा जैसी चुनौतियों पर विचार-विमर्श से मिली अनुशंसाएँ उपयोगी साबित होंगी।
मुख्य अतिथि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अरुण भंसाली ने कहा कि “बच्चों का कल्याण सामूहिक प्रयास है। जिस दिन एक दूरस्थ गाँव की बच्ची बिना भय और भेदभाव के स्कूल जा सकेगी, स्वास्थ्य सेवाएँ ले सकेगी और अपने सपनों को जी सकेगी, उसी दिन हमारे प्रयास सफल माने जाएंगे।”
न्यायमूर्ति रंजन रॉय ने अपने संबोधन में कहा कि “बालिकाओं की सुरक्षा, आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा है। समाज को व्यवहार परिवर्तन के लिए आगे आना होगा।” वहीं न्यायमूर्ति अजय भनोट ने शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों के अभाव पर चिंता जताई और कहा कि “शिक्षण पद्धति ही बच्चों के जीवन को दिशा दे सकती है, खासकर सरकारी देखरेख वाले गृहों में।”
यूनिसेफ उत्तर प्रदेश फील्ड ऑफिस के प्रमुख ज़कारी एडम ने सेवाओं के एकीकरण और JJ Act तथा POCSO Act के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “बाल–अनुकूलता का सिद्धांत सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों और पाठ्यक्रमों का मार्गदर्शन करना चाहिए।”
कार्यक्रम में महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख सचिव लीना जौहरी ने विभागीय योजनाओं की जानकारी साझा की। इस अवसर पर तीन MoU भी हस्ताक्षरित हुए तथा ‘नई राहें, नए सपने’ नामक विज़ुअल प्रस्तुति और ‘उड़ान’ पत्रिका के दूसरे संस्करण का विमोचन किया गया।
परामर्श में न्यायिक अधिकारियों, प्रोबेशन अधिकारियों, शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधियों, सिविल सोसायटी और समुदाय से जुड़े विशेषज्ञों ने भाग लिया। विशेषज्ञों ने बाल श्रम, बाल विवाह और यौन शोषण जैसी गंभीर चुनौतियों पर अपने विचार रखे।
गौरतलब है कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में ऑनलाइन सुरक्षा को भी POCSO अधिनियम के दायरे में शामिल किया है। यह कदम बच्चों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।