राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उनके इंडोनेशियाई समकक्ष प्रबोवो सुबियांतो रविवार को 76वें गणतंत्र दिवस परेड समारोह के लिए पारंपरिक बग्गी में सवार होकर कार्तव्य पथ पर पहुंचे। इस परंपरा को 40 साल के लंबे समय के बाद पिछले साल फिर से शुरू किया गया था। राष्ट्रपति के अंगरक्षक द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो अगवानी की गई।
‘राष्ट्रपति के अंगरक्षक’ भारतीय सेना की सबसे वरिष्ठ रेजिमेंट है। सोने की परत चढ़ी काली बग्गी भारतीय और ऑस्ट्रियाई मिश्रित नस्ल के घोड़ों द्वारा खींची जाती है। इस बग्गी में सोने की परत चढ़ाए गए रिम भी हैं। राष्ट्रपति की इस बग्गी का इस्तेमाल 1984 तक गणतंत्र दिवस समारोह के लिए किया जाता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इसे बंद कर दिया गया था।
सुरक्षा कारणों से बंद होने से पहले इस बग्गी का इस्तेमाल आखिरी बार 1984 में ज्ञानी जैल सिंह ने किया था। इसके बाद राष्ट्रपतियों ने यात्रा के लिए लिमोजीन का उपयोग करना शुरू कर दिया।
साल 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बीटिंग रिट्रीट समारोह के लिए इसका दोबारा इस्तेमाल किया था। इसके बाद साल 2017 में रामनाथ कोविंद में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद बग्गी में गार्ड सलामी गारद का निरीक्षण किया था। ब्रिटिश काल के दौरान बग्गी भारत के वायसराय की थी। 1947 में भारत की आजादी के बाद गाड़ी पर दावे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद छिड़ गया।
विवाद का कोई तत्काल समाधान निकालने के लिए भारत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के अधिकारी साहबजादा याकूब खान ने तय किया कि बग्गी का स्वामित्व सिक्का उछालकर टॉस के आधार पर होगा। माना जाता है कि भारत ने टॉस जीता और तब से बग्गी देश के पास है। इस बग्गी का इस्तेमाल कई राष्ट्रपतियों द्वारा अलग-अलग अवसरों पर किया गया है।