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सुप्रीम कोर्ट ने पीएफआई के 8 कथित सदस्यों की जमानत की रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें गैर-कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के आठ कथित सदस्यों को जमानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने हाई कोर्ट  से पिछले साल 19 अक्टूबर को जमानत पाए आरोपितों को तत्काल आत्मसमर्पण करने और जेल जाने का निर्देश दिया।

पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘हाई कोर्ट के पारित आदेश को रद्द किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए के दाखिल याचिका पर ये फैसला सुनाया। एनआईए ने मद्रास हाई कोर्ट से आरोपियों को मिली जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

आठ आरोपितो को सितंबर 2022 में गिरफ्तार किया गया था। पिछले साल 20 अक्टूबर को, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर सुनवाई तब टाल दी थी जब आतंकवाद विरोधी एजेंसी की ओर से पेश वकील रजत नायर ने इसे तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था।

एनआईए ने अपनी याचिका में दावा किया कि पीएफआई एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है और इसकी स्थापना भारत में मुस्लिम शासन स्थापित करने और देश का शासन केवल शरिया कानून के तहत चलाने के ‘खतरनाक लक्ष्य’ की पूर्ति के लिए की गई है।

पीएफआई ने अपने मुखौटा संगठनों के जरिए तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के पुरासाइवक्कम में मुख्यालय की स्थापना की थी और अलग-अलग जिलों में कार्यालय खोले थे। पूरे तमिलनाडु में इस्लामिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने पर पीएफआई के कथित पदाधिकारियों, सदस्यों और काडर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।