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पीटी ऊषा ने राज्यसभा में उठायी वायनाड के कॉफी उत्पादकों की समस्याएं, तत्काल कार्रवाई की मांग की

New Delhi: राज्यसभा में पूर्व एथलीट और मनोनीत सदस्य पी. टी. ऊषा ने बुधवार को केरल के वायनाड जिले के कॉफी उत्पादकों के गहराते संकट पर चिंता जताते हुए मानव-वन्यजीव संघर्ष से लेकर फसल बीमा की विफलता तक के मुद्दों पर सरकार से समन्वित और समयबद्ध कार्रवाई की मांग की। शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए ऊषा ने कहा कि वायनाड की कॉफी देश की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

कोझिकोड जिले से ताल्लुक रखने वाली ऊषा देश की प्रमुख ट्रैक एवं फील्ड एथलीटों में शामिल हैं। उन्होंने कहा, “सबसे पहला और गंभीर मुद्दा मानव और वन्यजीव संघर्ष का है। जंगली जानवर लगातार कॉफी बागानों में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे फसलों को भारी नुकसान हो रहा है और मानव जीवन पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है।” मनोनीत सदस्य ने कहा कि क्षेत्र के जंगल में वन्यजीवों को पर्याप्त आहार नहीं मिल पा रहा है, जिससे जानवर भोजन की आसान उपलब्धता के कारण बागानों का रुख कर रहे हैं।

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राज्य वन विभाग के समन्वय से तत्काल वैज्ञानिक वन्यजीव प्रबंधन उपाय नहीं किए गए, तो बागानों को होने वाला नुकसान और जानमाल की क्षति अपूरणीय हो जाएगी। फसल बीमा के मुद्दे पर ऊषा ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था उत्पादकों को न्याय दिलाने में विफल रही है, क्योंकि नुकसान के आकलन की प्रणालियां पुरानी और त्रुटिपूर्ण हैं, खासकर ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा, बाढ़ और अनियमित वर्षा आम हो गई है।

उन्होंने कॉफी बोर्ड से सभी हितधारकों की संयुक्त बैठक बुलाकर बीमा मानकों में सुधार करने और समय पर और उचित मुआवजा सुनिश्चित करने का आग्रह किया। बागानों में गहरे श्रमिक संकट का उल्लेख करते हुए ऊषा ने कहा कि मशीनीकरण अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन गया है। उन्होंने कहा, “भारतीय कॉफी बागान अब भी पुरानी पद्धतियों पर निर्भर हैं, जिससे हम वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं रह पा रहे हैं।”

उन्होंने कॉफी बोर्ड से भू-भाग के अनुरूप मशीनीकरण और आधुनिक उपकरणों को तत्काल बढ़ावा देने का आग्रह किया। ऊषा ने उत्पादकों और कृषि श्रमिकों को जोड़ने के लिए एक सरल मोबाइल प्लेटफॉर्म विकसित करने का सुझाव भी दिया, जिससे रोजगार तक पहुंच और कार्यक्षमता में सुधार हो सके। सांसद ने ‘ब्लॉसम शावर’ के दौरान स्थानीय निकायों द्वारा सिंचाई में हस्तक्षेप का मुद्दा भी उठाया और कहा कि अधिकारी कई बार निजी जल स्रोतों के उपयोग पर भी रोक लगा देते हैं, जिससे कॉफी उत्पादकों का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है।

उन्होंने ऐसी मनमानी कार्रवाइयों को रोकने के लिए स्पष्ट कानूनी दिशा-निर्देशों की मांग की। ‘ब्लॉसम शावर’ मानसून-पूर्व वर्षा है जो भारत के दक्षिणी हिस्सों, खासकर केरल और कर्नाटक में मार्च-अप्रैल के दौरान होती है। यह कॉफी के फूलों के खिलने के लिए बेहद ज़रूरी होती है, जिससे कॉफी की फसल अच्छी होती है। इसे 'कॉफी शावर' या 'चेरी ब्लॉसम वर्षा' भी कहते हैं। ऊषा ने जोर देकर कहा कि वर्ष 2030 तक भारतीय कॉफी बागानों को एआई-सक्षम स्मार्ट फार्म में परिवर्तित किया जाना चाहिए, ताकि तकनीक, वहनीयता और सटीक कृषि को एकीकृत कर अगली पीढ़ी के उत्पादकों का भविष्य सुरक्षित किया जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि वायनाड रोबस्टा को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिल चुका है, लेकिन उत्पादकों को गुणवत्ता मूल्यांकन और वैश्विक पहचान की पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसके लिए उन्होंने कॉफी बोर्ड के सहयोग से वार्षिक कपिंग प्रतियोगिताएं और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की मांग की। उन्होंने कहा, “मैं सरकार से अनुरोध करती हूं कि इस मुद्दे को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए वायनाड के कॉफी उत्पादकों की रक्षा के लिए समन्वित और समयबद्ध कार्रवाई की जाए।”