नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली ने उन्नत ‘ब्रेन स्टेंट’ का देश में पहला समर्पित क्लीनिकल ट्रायल करके गंभीर मस्तिष्काघात के इलाज में एक मील का पत्थर हासिल किया है।
अधिकारियों ने बताया कि ‘ग्रैविटी स्टेंट-रीट्रीवर सिस्टम फॉर रिपरफ्यूजन आफ लार्ज वेसल अक्लूशन ट्रायल’ (ग्रासरूट ट्रायल) ने सुपरनोवा स्टेंट (ग्रैविटी मेडिकल टेक्नोलॉजी) का मू्ल्यांकन किया। इस ट्रायल ने गंभीर मस्तिष्काघात के इलाज में उत्कृष्ट सुरक्षा और प्रभावशीलता के परिणाम दिखाए हैं।
इसके परिणामों को प्रतिष्ठित ब्रिटिश मेडिकल जर्नल समूह के भाग ‘जर्नल आफ न्यूरोइनटरवेशनल सर्जरी’ (जेएनआईएस) में प्रकाशित किया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि एम्स दिल्ली ‘ग्रासरूट ट्रायल’ के लिए राष्ट्रीय समन्वय केंद्र और प्रमुख पंजीकरण स्थल था। यह एक नये और उन्नत स्ट्रोक उपचार उपकरण, सुपरनोवा स्टेंट का भारत का पहला क्लीनिकल ट्रायल था।
एम्स दिल्ली के न्यूरोइमेजिंग और इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एवं प्रमुख तथा ‘ग्रासरूट ट्रायल’ के राष्ट्रीय प्रधान अन्वेषक डॉ. शैलेश बी. गायकवाड ने कहा कि 'यह परीक्षण भारत में स्ट्रोक के उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है।'
जेएनआईएस के अनुसार, सुपरनोवा स्टेंट का मूल्यांकन करने वाले इस ट्रायल में गंभीर स्ट्रोक के उपचार में उत्कृष्ट सुरक्षा और प्रभावशीलता परिणाम पाए गए हैं।
इस साल की शुरुआत में, ‘ग्रासरूट ट्रायल’ से प्राप्त आंकड़ों को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा स्वीकार कर लिया गया था और सुपरनोवा स्टेंट-रिट्रीवर को भारत में नियमित उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई थी।
एम्स ने एक बयान में कहा, “यह देश का पहला स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) उपचार उपकरण है जिसे घरेलू क्लीनिकल ट्रायल के आधार पर मंजूरी मिली है। यह इसके ‘ग्रासरूट इंडिया ट्रायल’ के बाद मिली है, जिसने जानलेवा स्ट्रोक के इलाज में उपकरण की सुरक्षा और प्रभावशीलता की पुष्टि की है।”
उसने कहा, “आठ केंद्रों में आयोजित यह ट्रायल मेक-इन-इंडिया पहल के लिए एक मील का पत्थर है और उन्नत स्ट्रोक देखभाल में भारत को वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है।”
भाषा अमित रंजन
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