जैसलमेर, 13 दिसंबर (भाषा) ‘एकीकृत न्यायिक नीति’ पर जोर देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने शनिवार को कहा कि प्रौद्योगिकी अदालतों के बीच मानकों और प्रक्रियाओं को एकरूप बनाने में मदद कर सकती है, जिससे नागरिकों को उनके स्थान की परवाह किए बिना एक ‘सुगम और निर्बाध अनुभव’ मिल सके।
उन्होंने कहा कि संघीय ढांचे के कारण उच्च न्यायालयों की अपनी-अपनी प्रक्रियाएं और तकनीकी क्षमताएं रही हैं, लेकिन प्रौद्योगिकी की मदद से इन “क्षेत्रीय बाधाओं” को तोड़कर एक अधिक एकीकृत न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सकता है।
जैसलमेर में आयोजित पश्चिम क्षेत्र क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने “राष्ट्रीय न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र” की अवधारणा प्रस्तावित की और प्रौद्योगिकी के एकीकरण के साथ भारत की न्यायिक व्यवस्था में व्यापक सुधार का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, “आज, जब प्रौद्योगिकी भौगोलिक बाधाओं को कम कर रही है और एकीकरण को संभव बना रही है, यह हमें न्याय को अलग-अलग क्षेत्रीय प्रणालियों के रूप में नहीं, बल्कि साझा मानकों, सुगम इंटरफेस और समन्वित लक्ष्यों वाले एक राष्ट्रीय पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में सोचने के लिए आमंत्रित करती है।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समय के साथ न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी की भूमिका कैसे बदली है।
उन्होंने कहा, “प्रौद्योगिकी अब केवल प्रशासनिक सुविधा तक सीमित नहीं रही है। यह एक संवैधानिक औजार बन गई है, जो कानून के समक्ष समानता को मजबूत करती है, न्याय तक पहुँच को व्यापक बनाती है और संस्थागत दक्षता को बढ़ाती है। इस प्रकार, उन्होंने डिजिटल उपकरणों की मदद से न्यायिक प्रणाली में मौजूद खामियों और अंतराल को पाटने की क्षमता पर प्रकाश डाला।’’
उन्होंने इस बात पर भी विशेष बल दिया कि कैसे 'डिजिटल टूल' न्यायिक प्रणाली की कमियों को दूर कर सकते हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बताया कि प्रौद्योगिकी न्यायपालिका को भौतिक दूरी और ब्यूरोक्रेटिक रुकावटों को लांघने करने में मदद करती है।
भाषा पृथ्वी
रवि कांत दिलीप
दिलीप