नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि खासतौर पर विचाराधीन मामलों पर आधे-अधूरे सच और अधूरी जानकारी पर आधारित टिप्पणी से जनता की सोच प्रभावित होती है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह मामलों की रिपोर्टिंग से प्रभावित नहीं होता और किसी प्रचार या कोई विमर्श बनाए जाने से न्यायालय को कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली की पीठ ने बांग्लादेश वापस भेजे गए कुछ व्यक्तियों की स्वदेश वापसी से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की। दरअसल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मुद्दे पर एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित समाचार लेख पर पीठ के समक्ष कड़ी आपत्ति जताई थी।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘साथ-साथ कहानी गढ़ने का काम चल रहा है। मुझे यकीन है कि इससे आप लॉर्डशिप पर कोई असर नहीं पड़ता। कुछ टैब्लॉइड अखबार हैं जो आमतौर पर कहानी गढ़ने के लिए जाने और इस्तेमाल किए जाते हैं। दुर्भाग्य से, आज मुझे आश्चर्य और हैरानी हुई जब मैंने एक प्रतिष्ठित और भरोसेमंद अखबार जैसे ... के पहले पन्ने पर एक खबर पढ़ी, जो संपादकीय ध्यान से छूट गई होगी।’’
सुनवाई के दौरान अदालत को जानकारी दी गई कि गर्भवती महिला सुनाली खातून और उसका आठ साल का बेटा भारत लौट आए हैं। फिलहाल दोनों को पश्चिम बंगाल के बीरभूम में खातून के पिता के घर पर चिकित्सा सुविधा मिल रही है।
पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर सुनवाई के लिए छह जनवरी की तारीख तय की।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कुछ व्यक्तियों को बांग्लादेश भेजे जाने के मामले में उचित प्रक्रिया न अपनाए जाने के आरोप लगने के बाद उन्हें भारत वापस लाने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने इस मुद्दे पर एक अंग्रेज़ी समाचार पत्र में प्रकाशित खबर पर कड़ी आपत्ति जताई।
उन्होंने कहा, “मैं इसे तूल नहीं देना चाहता… लेकिन मुझे लगता है कि किसी खास तरह का विमर्श गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि मामले के नतीजे को प्रभावित किया जा सके।’’
मेहता ने कहा कि उन्हें यकीन है कि अदालत ऐसी किसी भी खबर से प्रभावित नहीं होगी, लेकिन इससे यह संदेह पैदा होता है कि किसी खास तरह का विमर्श गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “हम प्रचार और दिखावे से पूरी तरह से मुक्त हैं। किसी भी विमर्श या दृष्टिकोण का व्यक्तियों के जीवन पर असर नहीं पड़ना चाहिए।”
प्रधान न्यायाधीश ने मेहता को इन चीजों को नजरअंदाज करने की सलाह देते हुए कहा, “विचाराधीन मामलों पर अधूरी और गलत जानकारी पर आधारित टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए।”
उन्होंने कहा, “समस्या यह है कि आधे-अधूरे और तोड़ मरोड़कर तथ्य पेश किए जा रहे हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “खबर में यह बताना ठीक है कि किसी मामले की सुनवाई होने वाली है। लेकिन यदि आप अपनी राय जबरदस्ती थोपते हैं, तो यह समस्या है। असली समस्या यह है कि आधा-अधूरा सच और गलत जानकारी पर आधारित राय जनता की सोच को प्रभावित करती है।”
प्रधान न्यायाधीश ने मेहता को आश्वासन देते हुए कहा,‘‘हम ऐसे तर्क स्वीकार नहीं करते जो हमारे दायरे से बाहर हों।’’
न्यायामूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘निर्णय सुनाए जाने के बाद, किसी भी रचनात्मक आलोचना का हमेशा स्वागत है।’’
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाल के समय में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में मीडिया की भूमिका का उल्लेख किया और कहा कि प्रवासन के मुद्दे पर दुनियाभर में चर्चा हो रही है और इस पर सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर टिप्पणियां और सार्वजनिक चर्चा होती रहती है।
सिब्बल ने कहा, “लोग अमेरिका और ब्रिटेन में प्रवासन पर अपनी राय लिखते हैं। जब तक आपके इरादे जाहिर नहीं हो जाते, यह आपत्तिजनक नहीं माना जाता।”
भाषा राजकुमार शफीक
शफीक