(तस्वीरों के साथ)
श्री विजयपुरम, 12 दिसंबर (भाषा) केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि देश में अस्पृश्यता उन्मूलन के प्रयासों के लिए वी.डी. सावरकर को वह सम्मान कभी नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे।
श्री विजयपुरम में सावरकर के गीत ‘सागर प्राण तलमाला’ की 115वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि उन्होंने हिंदू समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ साहस के साथ लड़ाई लड़ी और समुदाय के विरोध का सामना करने के बावजूद प्रगति जारी रखी।
गृहमंत्री ने कहा, ‘‘सावरकर ने अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए एक महान संघर्ष किया। उन्होंने हिंदू समाज की सभी बुराइयों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए काम किया।’’
शाह ने कहा कि आजादी से पहले, यहां सेलुलर जेल में लाए गए किसी भी व्यक्ति को उसके परिवार वाले भूल जाते थे।
उन्होंने कहा, ‘‘किसी ने नहीं सोचा था कि वह कभी इस जेल से लौटेंगे। आज यह स्थान सभी भारतीयों के लिए तीर्थस्थल बन गया है क्योंकि वीर सावरकर ने अपना कठिन समय यहीं बिताया था।’’
शाह ने कहा कि यहां हर राज्य से किसी न किसी व्यक्ति को फांसी दी गई थी।
गृह मंत्री ने कहा कि यह स्थान सुभाष चंद्र बोस की यादों से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि आजाद हिंद फौज ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को मुक्त कराया था।
उन्होंने कहा कि बोस ने यहां के दो द्वीपों का नाम ‘शहीद’ और ‘स्वराज’ रखा था, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आधिकारिक रूप दिया।
शाह ने कहा कि सावरकर जन्मजात देशभक्त और दूरदर्शी होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक, कवि और लेखक भी थे।
उन्होंने कहा, ‘‘बहुत कम लेखक गद्य और पद्य दोनों में महारत हासिल कर पाते हैं। मैंने उनका साहित्य गहराई से पढ़ा है, और आज भी मैं यह तय नहीं कर पाता कि वह बेहतर कवि थे या लेखक; दोनों में ही वह उत्कृष्ट थे। बाद में वह एक महान भाषाविद् बने। उन्होंने अनेक नए शब्द गढ़कर हमारी भाषा को समृद्ध किया। वीर सावरकर ने हमारी भाषाओं को समृद्ध करने के लिए 600 से अधिक शब्द दिए हैं।’’
शाह ने कहा कि सावरकर को एक ही जीवनकाल में दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
उन्होंने कहा, “जब वह (सावरकर) सेलुलर जेल पहुंचे, तो जेलर ने कहा, सावरकर, आप आ तो गए हैं, लेकिन आप यहां से जा नहीं पाएंगे। इस पर उन्होंने जवाब दिया, ‘मैं जरूर जाऊंगा; आपके शासन का जीवनकाल मेरे से कम है। मैं भारत माता को स्वतंत्र देखकर ही जाऊंगा।’ देश के भविष्य और भारत की स्वतंत्रता में उनका अटूट विश्वास ऐसा ही था।”
गृह मंत्री ने कहा, ‘‘सावरकर की एक पंक्ति मेरे जैसे उनके अनेक अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है - ‘वीरता भय की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि भय पर विजय है।’ सच्चे नायक वे हैं जो भय को समझते हैं और उसे पराजित करने का साहस रखते हैं।’’
उन्होंने कहा कि इस विचारक को ‘वीर’ की उपाधि सरकार ने नहीं बल्कि जनता ने दी थी, जो उनकी स्वीकृति को दर्शाती है।
भाषा नेत्रपाल धीरज
धीरज