नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार के खिलाफ दो दशक पुराने एक मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देते हुए बुधवार को कहा कि जो लोग जांच करते हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए। इस मामले में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ किए जाने और आपराधिक धमकी देने के आरोप हैं।
यह मामला 2001 की एक घटना से जुड़ा हुआ है, जब कुमार केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) में संयुक्त निदेशक थे और उन पर एक मामले में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च 2019 को अपनी एकल पीठ के साल 2006 के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी थी, जिसके तहत कुमार और तत्कालीन सीबीआई अधिकारी विनोद पांडे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने कहा, “अब समय आ गया है कि जांच करने वालों की भी कभी-कभी जांच की जानी चाहिए, ताकि आम जनता का व्यवस्था में विश्वास बना रहे।”
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि दिल्ली पुलिस का विशेष प्रकोष्ठ मामले की जांच करे। उसने स्पष्ट किया कि जांच सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) स्तर से नीचे के अधिकारी द्वारा नहीं की जानी चाहिए।
पीठ ने कहा, “यह अपराध वर्ष 2000 में होने का आरोप लगाया गया है और आज तक मामले की जांच नहीं होने दी गई। अगर ऐसे अपराध की जांच न होने दी जाए, तो यह न्याय के विपरीत होगा, खासकर तब जब इसमें सीबीआई में प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारियों की संलिप्तता हो।”
शीर्ष अदालत ने “प्रमुख कानून” को रेखांकित किया, जो कहता है कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए।
रिकॉर्ड के मुताबिक, शीश राम सैनी और विजय कुमार अग्रवाल नाम के दो व्यक्तियों ने क्रमशः पांच जुलाई 2001 और 23 फरवरी 2004 को पुलिस के समक्ष अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराते हुए जांच की मांग थी, लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
सैनी ने अपनी शिकायत में जहां कुमार और पांडे पर दस्तावेजों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था। वहीं, अग्रवाल ने दावा किया था कि कुमार के कहने पर पांडे ने उसे आपराधिक धमकी दी।
उस समय सीबीआई अग्रवाल और उनके भाई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पूर्व अधिकारी अशोक अग्रवाल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच कर रही थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब पुलिस अधिकारियों ने इस आधार पर शिकायतकर्ताओं की शिकायतों पर विचार करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई कि सीबीआई अधिकारियों की जांच करना उचित नहीं है, तो उन्होंने (शिकायतकर्ताओं ने) उच्च न्यायालय का रुख किया।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि दोनों अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किए जाने से उनके प्रति कोई पूर्वाग्रह पैदा होने की संभावना नहीं है। उसने कहा कि अधिकारियों को यह साबित करने के लिए जांच में हिस्सा लेने का अधिकार होगा कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।
भाषा पारुल अविनाश
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