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दांतों की दैनिक सफाई में छिपा प्लास्टिक संकट, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा

सारोश शाहिद (रीडर, डेंटल मैटेरियल्स, क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी, लंदन)

लंदन, 10 सितम्बर (द कन्वरसेशन) दांतों की नियमित सफाई, फ्लॉसिंग और छह महीने में एक बार दंत चिकित्सक से दांतों की जांच कराना... ये सभी दांतों की सफाई के लिए जरूरी कदम माने जाते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये दैनिक आदतें अनजाने में पृथ्वी पर माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ावा दे रही हैं।

शोध से पता चला है कि टूथपेस्ट, फ्लॉस, टूथब्रश और दंत चिकित्सकों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री के माध्यम से हर दिन माइक्रोप्लास्टिक के अरबों कण जल प्रणाली में पहुंच रहे हैं।

विशेषज्ञों ने बताया कि प्लास्टिक माइक्रोबीड पर कई देशों में प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन आज भी कई टूथपेस्ट में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होते हैं। वहीं, अधिकांश डेंटल फ्लॉस नायलॉन या टेफ्लॉन जैसे गैर-जैव अपघटनीय पदार्थों से बने होते हैं, जो पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं।

टूथब्रश दैनिक जीवन का उपयोगी हिस्सा है। लेकिन ये टूथब्रश भी इस संकट में योगदान दे रहे हैं। सामान्य उपयोग के दौरान उनके नायलॉन ब्रिसल के छोटे-छोटे कण टूटकर पानी के माध्यम से जल प्रणाली में प्रवेश कर जाते हैं। ये कण मलजल में प्रवेश करते हैं, उपचार प्रणालियों से गुजरते हैं और अंततः समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं में पहुंच जाते हैं, जहां इन्हें प्लवक, शंख, मछली खा जाते हैं और अंततः यह मनुष्य के शरीर में पहुंच जाते हैं।

इसके अलावा, दांतों की ‘‘रेजिन-बेस्ड कंपोजिट फिलिंग’’, जो पारे वाले अमलगम भरावों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल हो रही हैं, उनके भी पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। ब्रिटिश डेंटल जर्नल में प्रकाशित 2022 की समीक्षा में बताया गया कि ये प्लास्टिक फिलिंग समय के साथ टूटकर माइक्रोप्लास्टिक और रसायनिक अवयवों को छोड़ती हैं, जो अंततः अपशिष्ट जल के माध्यम से पर्यावरण में पहुंचते हैं।

डेंटल प्रक्रियाओं जैसे ड्रिलिंग या पॉलिशिंग के दौरान बनने वाली महीन प्लास्टिक धूल भी चिंताजनक है। ये कण जल प्रणाली के माध्यम से फैलते हैं और इनके टूटने से और भी ज्यादा रसायन निकल सकते हैं।

ऐक्रेलिक डेंचर, माउथगार्ड, नाइटगार्ड और क्लियर अलाइनर भी निरंतर उपयोग से सूक्ष्म प्लास्टिक कण छोड़ते हैं। ये सूक्ष्म प्लास्टिक कण जल प्रणाली में जाते हैं और किसी न किसी तरह चक्रीय व्यवस्था से होते हुए हमारे शरीर में पहुंचते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि बिसफेनॉल-ए (बीपीए) जैसे रसायन, जो कुछ दंत रेजिन में पाए जाते हैं, हॉर्मोनल असंतुलन और एंडोक्राइन सिस्टम में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। 2024 के एक चिकित्सा अध्ययन में धमनी की परत में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए, और उन रोगियों में दिल का दौरा या स्ट्रोक का जोखिम अधिक पाया गया।

ऐसा नहीं है कि इस समस्या का समाधान नहीं है। समाधान की दिशा में प्रयास के लिए उद्योग और उपभोक्ता दोनों स्तरों पर बदलाव जरूरी है।

यह ध्यान देना होगा कि निर्माता अब प्राकृतिक तत्वों जैसे सिलिका या क्ले वाले टूथपेस्ट बना रहे हैं। यह भी खास बात है कि 15 से अधिक देशों में माइक्रोबीड पर प्रतिबंध लग चुका है।

इसके अलावा कुछ डेंटल क्लीनिक एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर जैसी तकनीकों का परीक्षण कर रहे हैं।

अब उपभोक्ताओं के पास भी विकल्प हैं। टूथपेस्ट टैबलेट, बांस के ब्रश, प्राकृतिक रेशों वाले फ्लॉस और मेटल ब्रेसेज़ जैसे पर्यावरण अनुकूल विकल्प अब उपलब्ध हैं।

प्लास्टिक-आधारित दंत उत्पादों ने भले ही चिकित्सा और सौंदर्य की दृष्टि से लाभ दिए हों, लेकिन उनके पर्यावरणीय और संभावित स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव अब उजागर हो रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि नवाचार और जागरूकता के माध्यम से ही हम दंत चिकित्सा को प्लास्टिक संकट से बचाते हुए अपनी मुस्कान को सुरक्षित रख सकते हैं।

द कन्वरसेशन

मनीषा नरेश अविनाश

अविनाश