डांग दरबार परंपरा एक सदी से भी ज्यादा समय से शाही गरिमा और आदिवासी पहचान का प्रतीक रहा है। कभी ये भील राजाओं के लिए ब्रिटिश शासन से राजनैतिक पेंशन प्राप्त करने का दरबार था, लेकिन आज ये गुजरात के डांग जिले में भव्य सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 9 से 12 मार्च तक चलने वाला त्योहार एक बार फिर आदिवासी विरासत, इतिहास और उत्सव को साथ लेकर आएगा।
डांग दरबार की शुरुआत 1842 में हुई थी, जब ब्रिटिश शासन ने भील राजाओं ने जंगल पट्टे पर दिए थे। इसके बदले में उन्हें भव्य दरबार में हर साल पेंशन दी जाती थी। समय के साथ परंपरा बदली और अब ये एक जीवंत महोत्सव बन चुका है, जहां आदिवासी नेताओं का सम्मान किया जाता है, जनसुनवाई होती है और समुदाय एकजुट होते हैं।
डांग दरबार आदिवासी नृत्य, संगीत और रंग-बिरंगी परंपराओं का अद्भुत संगम है। हवा में कहालिया और तड़पुर जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनें गूंजती हैं और पारंपरिक परिधान में लोग घेरे में तालबद्ध नृत्य करते हैं। स्थानीय हाट बाजारों से लेकर होली उत्सव तक, ये महोत्सव आगंतुकों को डांग की समृद्ध आदिवासी संस्कृति का अनोखा अनुभव देता है।