नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता संविधान के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता का अभिन्न अंग है तथा परिवार या समुदाय सहमति से विवाह करने वाले दो वयस्कों की पसंद में बाधा नहीं डाल सकते। यह बात दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कही।
उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना है कि भारत में जाति का सामाजिक प्रभाव अब भी मजबूत है और अंतरजातीय विवाह एकीकरण को बढ़ावा देकर तथा जातिगत विभाजन को कम करके एक मूल्यवान संवैधानिक एवं सामाजिक कार्य करते हैं।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 4 नवंबर को पारित एक आदेश में कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ऐसे विवाह राष्ट्रीय हित में हैं और इन्हें किसी भी पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से कड़ा संरक्षण मिलना चाहिए।’’
न्यायालय ने कहा कि जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता का अभिन्न अंग है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘जहां दो वयस्क सहमति से विवाह करने या साथ रहने का निर्णय लेते हैं, वहां न तो परिवार और न ही समुदाय कानूनी रूप से उस विकल्प में बाधा डाल सकता है और न ही उन पर दबाव, सामाजिक प्रतिबंध बना सकता है या धमकियां दे सकता है।’’
अदालत ने यह टिप्पणी एक अंतरजातीय जोड़े को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए की, जो पिछले 11 वर्षों से एक-दूसरे के साथ रिश्ते में हैं और अब शादी करने का इरादा रखते हैं।
हालांकि, दोनों की मां और अन्य रिश्तेदार उनके रिश्ते का विरोध कर रहे थे और धमकियां दे रहे थे, जिसके कारण उन्हें सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
जोड़े ने दिल्ली पुलिस को अपनी सुरक्षा करने और शादी के अपने फैसले में किसी हस्तक्षेप को रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
भाषा वैभव नेत्रपाल
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