पश्चिम बंगाल के सेरामपुर में मौजूद ये खास दुकान परंपरा, सामुदायिक जीवन और चाय के लिए अगाध प्रेम का स्थायी प्रतीक है। सेरामपुर के चतरा काली बाबू श्मशान घाट के सामने स्थित 100 साल पुरानी इस चाय की दुकान की अहमियत इसकी मौजूदगी से कहीं ज्यादा है।
हर शाम जैसे ही सूरज डूबता है, लोग दुकान पर इकट्ठा होते हैं। वे यहां सिर्फ चाय पीने के लिए नहीं आते बल्कि एक-दूसरे से जुड़े होने का अहसास और साझा इतिहास की भागीदारी उन्हें यहां खींच लाती है। ये दुकान एक ऐसी जगह है जहां ग्राहक सिर्फ ग्राहक नहीं बल्कि भागीदार भी होते हैं। ये लोग चाय बनाने और परोसने में हाथ बंटाने के लिए तैयार रहते हैं।
इस चाय की दुकान से जुड़ी दिलचस्प बात इसे चलाने का खास तरीका है। ग्राहकों पर कायम भरोसे की वजह से दुकान के मालिक हर सुबह दुकान खोलते हैं और थोड़ी देर बाद अपने काम पर निकल जाते हैं। इसके बाद रोज आने वाले ग्राहक दुकान को चलाना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। वे खुद चाय बनाते हैं, पीते हैं और दूसरों को भी पिलाते हैं।
चाय दुकान मालिक के मुताबिक उन्हें कभी भी ग्राहकों के पैसे न देने जैसी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। उनके मुताबिक ग्राहक खुद चाय बनाते हैं और तय रकम या तो कैश बॉक्स में डाल देते हैं या बाद में बकाया पैसा देने के लिए वापस आते हैं। अब ये सौ साल पुरानी चाय की दुकान सेरामपुर की विरासत का हिस्सा बन गई है।