सुनील गावस्कर की कई पारियां स्मृतियों में हैं। पोर्ट आफ स्पेन में लायड की पेस बेटरी के सामने 404 का लक्ष्य पार करना उस समय कल्पना से परे था। जिस टीम में होल्डिंग रोर्बट्स जूलियन होल्डर जैसे गेंदबाज हों और लांस गिब्स जुमाद्दीन जैसा गेंद को घुमाने वाले कारिगर वहां क्लाइव लायड ने 200 के आसपास रन बनाकर पारी घोषित करके क्या गलत किया था। लेकिन भारतीय टीम को एक अद्भुत पारी देखनी थी। सुनील गावस्कर ने शतक बनाया था। और बाकी काम मोहिंदर अमरनाथ विश्वनाथ बृजेश पटेल ने कर दिया था।
गावस्कर अपनी कैप पहनकर उस दौर में ओपनिंग करने आए जब दुनिया में लिली थामसन की रफ्तार थी। विलिस क्रिस ओल्ड जान स्नो की तूफानी गेंद थी। इमरान सरफराज हैडली का जलवा था। और तंग करने के लिए डेरिक अंडरवुड अब्दुल कादिर लांस गिब्स की लहराती गेंद थी। और केरिबियन बेटरी खेलती नहीं थी बल्कि आग उगलती थी। मेल्कम मार्शल भी था।
सुनील गावस्कर की बेहतरीन पारी में किस किस पारी को शामिल करें। याद आता है इंग्लैड की टीम आई थी। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फिरोजशाह कोटला मैदान में मैच देखने आए थे। तब सुनील ने दो स्ट्रेट ड्राइव लगाए थे सीमा रेखा के उस तरफ जहां पेवेलियन में खास तौर पर राष्ट्रपति को बिठाया गया था। तब मुरली मनोहर मंजुल ने कमेंट्री करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति महोदय को इससे अच्छा स्वागत क्या होगा कि गेंद दो बार उनके कदमों के पास आई हैं। समय के साथ उन्होंने ड्रान ब्रेडमैन का शतकों का रिकार्ड तोड़ा। उनके हर शतक में अपने खेल की खूबसूरती दिखी। कुछ पारियां ऐसी भी हैं जहां वो नब्बे और सौ के बीच आउट हुए। यह निऱाशा कुछ ऐसी होती थी मानों वह दस रन भी न बना पाएं हों।
याद आती है गावस्कर की वो पारी जब वो आखरी तक खेलते रहे। वह गावस्कर का युग था। भारतीय ओपनिंग की शुरुआत करते हुए गावस्कर क्रीज में रहते तो दिलासा रहती थी । अभी भारत खेल रहा है। लेकिन गावस्कर के आउट होते ही सारी उम्मीदें विश्वनाथ पर चली जाती। कपिल देव के भारतीय टीम में आने से पहले भारतीय बल्लेवाजी पाचवें छठवें विकट तक ही सिमंटती थी।बिशन सिंह बेदी चंद्रशेखर वेंकटराघवन इरापल्ली प्रसन्ना अपने युग के महान स्पिनर थे। पर ये सब मिलकर पचास रन भी नहीं जोड़ पाते थे। साफ कहें तो यह वह दौर था जब भारत किसी टेस्ट को ड्रा करा देने में भी जश्न मना देता था। वेस्टइंडीज इंग्लैड या न्यूजीलैंड को किसी टेस्ट में हरा देने की तो खुशी ही अलग। श्रंखला कभी कभार जीत पाते थे।
गावस्कर की क्रिकेट जीवन में बहुत कुछ सीखने को देती हैं। उनका सजह रहना उनकी वार्तालाप की शैली, उनका अंदाज सब लाजवाब है। विश्व क्रिकेट में उन्हें सम्मान क्रिकेट के साथ साथ उनके सलीके के लिए भी मिला।
उनके स्ट्रेट डाइव लाजवाब होते थे। बल्ले को आड़ा करते तो गेंद कवर और प्वाइंट के बीच गेंद गोली की तरह निकलती थी। उनके स्वायर कट में सुंदर बानगी दिखती थी। उनके पास हुक शाट ज्यादा नहीं थे। न ही ऊंचाई पर गेंद को मारते थे। लेकिन उनके बल्ले से गेंद घास से चिपकती हुई सर से निकलती तो फील्डर को भी मौका न मिलता। सुनील गावस्कर में संयम और धैर्य दिखा। शतक लगाने के बाद भी उन्होंने किसी महायोद्धा की तरह बल्ले को चारों दिशा में नहीं घुमाया। बल्कि वो अंपायर से विकेट मिलाते हुए इस तरह खेलने लगते थे मानों अभी अभी पारी की शुरुआत कर रहे हों। पहली या दूसरी स्लिप पर खड़े होकर वह हमेशा फिल्डरों गेंदबाजों के लिए प्रेरणा भी बने रहे। बिल्कुल वैसे ही जैसे क्रीज पर खेलते हुए दूसरे बल्लेवाज के लिए सन्नी का होना महत्व रखता था। सुनील गावस्कर ऐसे बल्लेबाज रहे हैं जो आउट होते ही अंपायर के सिगनल का इंतजार नहीं करते थे। ग्लब्स उतार कर पेवेलियन की ओर चल पड़ते थे।
सुनील की क्रिकेट जितनी आकर्षक थी मुझे उनकी लिखी किताबें उतनी ही आकर्षक लगी। क्रिकेट कमेंटर सुरेश सरैया हमें क्रिकेट मैच दिखाने ले जाते थे। कमेंट्रेटर बाक्स में हम देखते थे कि सुनील गावस्कर के अखबारों के लिए जो कालम आते हैं वो खुद लिखते हैं। अंग्रेजी में बहुत सुंदर प्रवाह से लिखते रहे। उनकी राइटिंग भी मोती की तरह है। शायद आपको पता न हो वो मराठी गाने भी बहुत सुंदर गाते हैं। उनकी ससुराल कानपुर में हैं। मार्शलिन गावस्कर और सुनील गावस्कर के चित्र पत्र पत्रिकाओं में बहुत कम नजर आते हैं। लेकिन उनका जीवन बहुत खुशहाल है। 75 साल के सुनील गावस्कर को शुभकामना। क्रिकेट को बहुत ऊंचाई पर ले गए हैं गावस्कर।