Monday, June 5, 2023

चांदी लाती बऱफ



वेद विलास उनियाल

उत्तराखंड की ऊंची पहाडियां बरफ से लकदक है। इस बार की बऱफ जरा कुछ जमकर पडी है। उन इलाकों में भी बरफ की सफेद चादर बिछ गई है जहां पिछले उन्नीस बीस सालों में यह मान लिया गया था कि अब ये इलाके बर्फवारी के लिए नहीं रहे। अगर बऱफ कुछ देर के लिए गिर भी जाए तो टिकती नहीं थी। साइया में चालीस साल बाद बरफ गिरी  नई टिहरी के बोराडी में बरफ गिरी तो लोग रोमांचित हो गए।  मसूरी और नैनीताल में रिकार्डतोड बरफवारी ने माहौल और मिजाज को बदला।  पहाडों में दिसंबर जनवरी के महीने कभी इसी तरह की आबोहवा के साथ होते थे। बदलता वातावरण बढती आबादी कई कारण ऐसे रहे जिनसे कई इलाकों में बरफ का गिरना बंद हो गया। निश्चित तौर पर यह उत्तराखंड जैसे पहाडी राज्य के लिए अच्छी स्थिति नहीं थी।  बऱफ की अपेक्षा केवल प्रकृति के सौदर्य़ के रूप में ही नहीं होती बल्कि खेल बागवानी जडी बूटी और पानी का संचयन के लिए अच्छी बर्फ का गिरना जरूरी था। केवल हिमपात होना और कुछ घंटों के बाद पिघल जाने की प्रक्रिया  बर्फवारी का पूरा आंनद और लाभ नहीं देती। अच्छी बफवारी के बाद जब पाला गिरकर बरफ कुछ दिन बरफ गिरी रहती है तो प्रकृति कृषि और पर्यटन के लिए इसके बडे फायदे होते हैं।  ऐसे में ओंस की बूंद बरफ के उपर पडती है और  कांच की सी परत बन जाती है। यही परत सूर्य की किरणों को बऱफ तक नहीं पडने देती। इससे बऱफ जल्दी नहीं पिघळती और धीरे धीरे रिसती हुई धरती के अंदर समाती है। बरफ से रिसता पानी एक तरफ धरती में जल का संचयन बढाता है वहीं मिट्टी को नम करता है। इसलिए अच्छी बरफ पडने को खेती बाडी के लिए सुकून माना जाता है। उत्तराखंड में सेब, जो गेंहू सरसों जडीबूटी तमाम चीजों के लिए अच्छी बरफ की जरूरत रहती है। खासकर सेब के लिए जिस  चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है उसमें बऱफ का देर तक टिके रहना जरूरी है।  इस बार बरफ गिरने से सेब के पेडों में जान आ गई है। बर्फवारी की यह स्थिति उत्तराखंड के लिए अच्छे अवसर लाएगी।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस बार जम कर बर्फ गिरने पर खुशी जताई है। निश्चित तौर पर उनकी नजर बर्फ से पर्यटन के विकास के साथ साथ कृषि बागवानी पर भी होगी। पहाडों में हिमपात होने की संभावना होने की खबर भर से टूरिस्ट यहां उमड पडते हैं। मसूरी नैनीताल धनोल्टी  चमोली  पिथोरागढ  अल्मोडा  कई पहाडी शहरों की ओर देश भर से लोग उमडने लगते हैं। एक तरह से जिस विंटर पर्यटन को बढावा देने की बात कही जाती थी उसका आगाज तो हो ही गया है। अब जरूरत इस बात की है कि सर्दियों के पर्यटक उत्तराखंड के उन इलाकों तक भी पहुंचे जो बेहद रमणीक मगर उनके लिए अनजाने से हैं। बऱफ से ढकी चोटियों के मनोरम दृश्य   बरफ से लदे पहाडी नगर कस्बे  , तीर्थ स्थल  पर्यटकों को आमंत्रण दे रहे हैं। देखा भी गया कि मसूरी में नैनीताल में पर्यटक तेजी से बढते दिखे। मसूरी में कंपनी गार्डन लाल टिब्बा  नैनीताल में मालरोड नैना पीक किलबरी में पर्यटक बर्फवारी का लुत्फ उठाते दिखे। ऐसे ही नजारे घनोल्टी रानीखेत में भी भी नजर आए। बफर्वारी से लोगों की उम्मीदे खेती बागवानी को लेकर भी हैं। लंबे समय से कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में सेब को ब्रांड बनाने की जरूरत है। जिस तरह जमकर बर्फ गिरी है उससे माना जा रहा है कि इस बार सेब बहुत अच्छा होगा। सेब के लिए इससे अच्छा अनुकूल माहौल और क्या हो सकता है। उत्तराखंड में खेती बागवानी को उन्नत बनाने की दिशा में काम किए जाने की जरूरत है। रवी की फसल के लिए इस बार अच्छी उम्मीद बनी है। निश्चित तौर पर मौसम की मेहरबानी उस प्रदेश के लिए हुई है जो अपनी विकास की संभावनाओं को प्रकृति की उदारता  से भी देख रहा है। पर्यटन कृषि बागवानी के साथ साथ साहसिक खेलों के लिए भी माहौल बन रहा है।

ओली में जिस तरह बर्फ की चादर बिछी है उससे स्कीइंग के लिए माहौल बनता दिख रहा है। पिछले कुछ सालों से ओली में बरफ  तरसा तरसा कर पडती रही।  स्कीइंग के लिए जिस झमाझम बर्फवारी की अपेक्षा रहती है वह इस साल को देखने को मिली है। बर्फ अपने साथ कई  संभावनाएं लाई है।

बऱफ की फैली चादर  प्रकृति के सौंदर्य़ को बढाती हुई दिखी है। इस बरफ के सुंदर नजारे हैं। लेकिन बरफ आफत भी लाती है। कहा भी जाता है कि सैलानियों के लिए बरफ गिरना रोमांच है लेकिन जो लोग बर्फीले इलाकों में रहते हैं उनके लिए बरफ मुश्किलें लाती है। खासकर सुदूर ऊंचे पहाडी इलाकों में तो जीवन थम सा जाता है। बरफ से सड़कें जाम हो जाती हैं। बिजली अवरोध होने से पहाडी इलाके अंधकार में डूब जाते हैं। खासकर गांवों में चिकित्सकों की दिक्कत रहती है। बरफ में बाहर निकलना भी दुलर्भ हो जाता है। राज्य सरकार जहां बऱफ से पर्यटन  कृषि बागवानी साहसिक खेल तमाम क्षेत्रों में प्रदेश की सभावनाएं देख रही है तब उसके सामने इस मौसम की विकट चुनौती भी खडी रहती है। देखा गया कि उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन  का सिस्टम सुधारने की बहुत जरूरत है। इस बार कुछ जगहों पर बरफ हटाने की मशीन ने ही काम करना बंद कर दिया। बर्फीले इलाकों में दिक्कत होने पर आखिर सेना का सहारा लेना पडता है।  राज्य सरकार को सर्दियों से पहले जितना संभव हो सुरक्षा के इंतजाम करने चाहिए। खासकर ऐसे समय में यातायात जिस तरह अवरुद्ध हो जाता है  , पर्यटकों के सामने ही नहीं स्थानीय लोगों को भी दिक्कत होती है उस दिक्कत से पार पाना भी चुनौती है। हम जिन पर्यटकों से अपनी खुशहाली की अपेक्षा करते हैं उनकी दिक्कतों को दूर करना भी हमारी जिम्मेदारी होती है।  कहीं न कहीं पर्यटन स्थलों से जुड़ी तमाम समस्याओं को दूर करना प्राथमिकता में होना चाहिए। चार धाम के साथ साथ पूरे प्रदेश के पर्यटन को गति देनी है तो हमें हर पहलू पर सोचना ही होगा।

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